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किसान आंदोलन : न्यायालय ने गतिरोध दूर करने के वास्ते समिति बनाने की बात कही

उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को संकेत दिया कि कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमाओं पर धरना दे रहे किसानों और सरकार के बीच व्याप्त गतिरोध दूर करने के लिये वह एक समिति गठित कर सकता है क्योंकि ‘‘यह जल्द ही एक राष्ट्रीय मुद्दा बन सकता है।’’

उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को संकेत दिया कि कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमाओं पर धरना दे रहे किसानों और सरकार के बीच व्याप्त गतिरोध दूर करने के लिये वह एक समिति गठित कर सकता है क्योंकि ‘‘यह जल्द ही एक राष्ट्रीय मुद्दा बन सकता है।’’ 
उधर, सरकार की ओर से बातचीत का नेतृत्व कर रहे केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि दिल्ली के बॉर्डर पर जारी आंदोलन सिर्फ एक राज्य तक सीमित है और पंजाब के किसानों को विपक्ष ‘गुमराह’ कर रहा है। हालांकि, उन्होंने आशा जतायी कि इस गतिरोध का जल्दी ही समाधान निकलेगा। 
वहीं, प्रदर्शन कर रहे किसान यूनियनों का कहना है कि नए कृषि कानूनों पर समझौते के लिए नए पैनल का गठन कोई समाधान नहीं है, क्योंकि उनकी मांग कानूनों को पूरी तरह वापस लेने की है। उन्होंने यह भी कहा कि संसद द्वारा कानून बनाए जाने से पहले सरकार को किसानों और अन्य की समिति बनानी चाहिए थी। 
आंदोलन में शामिल 40 किसान संगठनों में से एक राष्ट्रीय किसान मजदूर सभा के नेता अभिमन्यु कोहर ने कहा कि उन्होंने हाल ही में ऐसे पैनल के गठन के सरकार की पेशकश को ठुकराया है। 
स्वराज इंडिया के नेता योगेन्द्र यादव ने ट्विटर पर कहा है, ‘‘उच्चतम न्यायालय तीनों कृषि कानूनों की संवैधानिकता तय कर सकता है और उसे ऐसा करना चाहिए। लेकिन इन कानूनों की व्यवहार्यता और वांछनीयता को न्यायपालिका तय नहीं कर सकती है। यह किसानों और उनके निर्वाचित नेताओं के बीच की बात है। न्यायालय की निगरानी में वार्ता गलत रास्ता होगा।’’ 
स्वराज इंडिया भी किसान आंदोलन के लिए गठित समूह संयुक्त किसान मोर्चा में शामिल है और यादव फिलहाल अलवर में राजस्थान सीमा पर धरने पर बैठे हैं। 
टीकरी बॉर्डर पर आंदोलन का नेतृत्व कर रहे भारतीय किसान यूनियन (एकता उग्राहां) का कहना है कि इस वक्त नयी समिति के गठन का कोई मतलब नहीं है। 
सितंबर में आए तीन कृषि कानूनों को केन्द्र सरकार कृषि के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सुधारों के रूप में पेश कर रही है, जो बिचौलियों को खत्म कर देगी और किसानों को अपना फसल देश में कहीं भी बेचने की अनुमति देगी। 
संयुक्त किसान मोर्चा ने केन्द्र सरकार को एक पत्र लिखकर विवादास्पद कानूनों पर अन्य किसान संगठनों के साथ ‘समानांतर वार्ता’ करना बंद करने की मांग की है। 
सरकार एक ओर जहां कह रही है कि वह किसान नेताओं के जवाब का इंतजार कर रही है, वहीं मोर्चा का कहना है कि जवाब देने का कोई मतलब ही नहीं बनता है, क्योंकि उन्होंने केन्द्रीय मंत्रियों के साथ अंतिम दौर की बातचीत में अपना रुख स्पष्ट कर दिया है कि वे कानूनों की पूर्ण वापसी चाहते हैं। 
केन्द्रीय कृषि और किसान कल्याण संयुक्त सचिव विवेक अग्रवाल को लिखे पत्र में मोर्चा ने कहा कि केन्द्र को कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे प्रदर्शन को ‘‘बदनाम’’ करना बंद करना चाहिए। 
आज दिन में दिल्ली-नोएडा के बीच चिल्ला बॉर्डर पर सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे क्योंकि किसान नेताओं ने अपनी मांगों को लेकर दबाव बनाने के लक्ष्य से इस महत्वपूर्ण बॉर्डर को पूरी तरह अवरुद्ध करने की धमकी दे रहे थे। 
हजारों की संख्या में किसान दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर पिछले 21 दिनों से डटे हुए हैं, जिसके कारण कई रास्ते भी अवरुद्ध हैं। 
इस मामले में सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि इसके समाधान के लिए वह एक समिति का गठन करेगी। 
प्रधान न्यायाधीश एस. ए. बोबड़े, न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना और न्यायमूर्ति रामासुब्रमणियन की पीठ ने कहा, ‘‘उसमें हम सरकार के सदस्य और किसान संगठनों के सदस्यों को शामिल करेंगे। जल्दी ही यह राष्ट्रीय मुद्दे का रूप भी ले सकता है। हम शेष भारत के किसान संगठनों के सदस्यों को भी इसमें शामिल करेंगे। आप समिति के सदस्यों के नाम की एक सूची प्रस्तावित करें।’’ 
न्यायालय ने इस मामले में किसान संगठनों को पक्ष बनाते हुए उनसे बृहस्पतिवार तक जवाब देने को कहा है। पीठ ने सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से कहा, ‘‘आपकी बातचीत से लगता है कि बात नहीं बनी है। 
पीठ ने कहा, ‘‘उसे असफल होना ही था। आप कह रहे हैं कि आप बातचीत के लिये तैयार हैं।’’ 
इसपर मेहता ने कहा, ‘‘हां, हम किसानों से बातचीत के लिये तैयार हैं।’’ 
इसपर जब पीठ ने केन्द्र की ओर से पेश हुए सॉलिसीटर जनरल से पूछा कि क्या वह उन किसान संगठनों के नाम मुहैया करा सकते हैं जिनके साथ सरकार बातचीत कर रही है। 
मेहता ने कहा, ‘‘वे भारतीय किसान यूनियन और दूसरे संगठनों के सदस्य हैं, जिनके साथ सरकार बात कर रही है।’’ उन्होंने कहा कि सरकार विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों के संगठनों से बातचीत कर रही है और उन्होंने न्यायालय को उनके नाम बताये। 
मेहता ने कहा, ‘‘अब, ऐसा लगता है कि दूसरे लोगों ने किसान आन्दोलन पर कब्जा कर लिया है।’’ 
न्यायालय ने केंद्र और अन्य को उन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए नोटिस भी जारी किये जिनमें दिल्ली की विभिन्न सीमाओं को अवरुद्ध किये हुए किसानों को हटाने और इस मुद्दे का सौहार्दपूर्ण समाधान निकालने का अनुरोध किया गया है। 
उधर, ग्वालियर में ऑनलाइन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कृषि मंत्री तोमर ने कहा कि इस मामले में पंजाब के किसान संगठनों सहित देश के कई किसान संगठनों से उनकी बातचीत चल रही है और जल्दी ही इसका समाधान निकल आएगा। 
उन्होंने कहा कि कृषि कानूनों के मुद्दे पर जो विपक्षी दल किसानों को गुमराह कर रहे हैं, वे अपने इरादे में सफल नहीं होंगे। तोमर ने कहा कि कृषि सुधार का जो काम शुरू हुआ है उससे किसानों का जीवन बदल जाएगा। उन्होंने कहा, ‘‘देश भर के किसान नये कानूनों का समर्थन कर रहे हैं। कई संगठन उनसे मिले भी हैं। पंजाब के किसान कुछ नाराज हैं, लेकिन जल्दी ही समाधान निकल आएगा।’’ 
इंदौर में केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने आरोप लगाया कि नये कृषि कानूनों को लेकर जारी किसान आंदोलन के पीछे उस भारत विरोधी और सामंतवादी ताकत का हाथ है जो भारतीयता और आत्मनिर्भर भारत की अवधारणाओं के भी खिलाफ है। 
प्रधान ने किसान आंदोलन के औचित्य पर सवाल खड़ा करते हुए कहा, ‘कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर इस बात की लिखित गारंटी देने को राजी हो चुके हैं कि देश में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर फसल खरीदी की व्यवस्था जारी रहेगी। फिर किसान आंदोलन आखिर किस मुद्दे पर हो रहा है?’ 
 

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