पटना : कृषि मंत्री डा. प्रेम कुमार ने कहा कि गेहूं में ब्लास्ट व्याधि एक कवक, मेग्नापोर्थे ओरायेजी पैथोटाईप ट्रटीकम से पैदा होती है। यह व्याधि सर्वप्रथम 1985 ई में ब्राजील में पायी गयी। बाद में यह बोलीविया, अर्जेंटीना, पैराग्वे, उरुग्वे तथा यूएसए में मिली। सन् 2016 ई में यह हमारे पड़ोसी देश बंगलादेश में पायी गयी है। क्योंकि बंगलादेश की सीमा का 4,096 किलोमीटर भारत की सीमा से लगता है तथा पश्चिमी बंगाल आदि राज्यों की करीब 11 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र की जलवायु भी ब्लास्ट के संक्रमण तथा फैलाव के लिए उपयुक्त है।
इसलिए आशंका जतायी जा रही है कि यह व्याधि भारत के उत्तर-पूर्वी मैदानी जलवायु क्षेत्र में फैलकर गेहॅू की फसल को हानि पहुंचा सकती है। इस बीमारी से गेहूँ की बालियाँ दाने पड़ने से पहले ही सूख जाती हैं तथा उपज में 40 से 100 प्रतिशत तक गिरावट आ जाती है।
कृषि मंत्री ने कहा कि यह रोग, बीज फसल अवशेष तथा हवा द्वारा फैलता है।
इसलिए इसकी रोकथाम के लिए बीज बोने से लेकर फसल में दाने पड़ने तक निगरानी तथा नियंत्रण की जरुरत है। गत दो फसल वर्षों से ब्लास्ट के लिए सघन निरीक्षण, विशेषज्ञों की टीमों के द्वारा पश्चिम बंगाल तथा असम में किया गया तथा कहीं से भी ब्लास्ट मिलने के संकेत नहीं मिले हैं। डा. कुमार ने कहा कि गेहूँ ब्लास्ट, दानों, पत्तियों तथा बालियों को संक्रमित करती है।
पत्तियों पर शुरु में गहरे हरे रंग के धब्बे बनते हैं, जो कि बाद में भूरे रंग के नाव के आकार के हो जाते हैं। इस रोग से संक्रमित पत्तियाँ जल्दी ही सूख जाती हैं। बालियों पर रोग काफी साफ एवं भयंकर रूप में आता है। संक्रमित बालियाँ समय से पहले ही सूख जाती हैं तथा इनमें ज्यादातर में दाने नहीं लगते, जिनमें दाने लगते भी हैं वह हल्के, बदरंग, तथा पतले हो जाते हैं।
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