केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि देश के कई जिलों में बैंकिंग सुविधाओं का अभाव है। उन्होंने रविवार को इंडियन बैंक्स एसोसिएशन के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि इन जिलों में आर्थिक गतिविधियों का स्तर काफी ऊंचा है, लेकिन बैंकिंग उपस्थिति काफी कम है। सीतारमण ने बैंकों से कहा कि वे अपनी मौजूदगी को बढ़ाने के प्रयासों को और बेहतर करें।
उन्होंने बैंकों से कहा कि उनके पास विकल्प है कि वे यह तय कर सकते हैं कि गली-मोहल्ले में छोटे स्तर के मॉडल के जरिये कहां बैंकिंग मौजूदगी दर्ज कराने की जरूरत है। वित्त मंत्री ने स्पष्ट किया कि वह डिजिटलीकरण और प्रयासों के खिलाफ नहीं हैं। उन्होंने कहा कि आज बैंकों का बही-खाता अधिक साफ-सुथरा है। इससे सरकार पर बैंकों के पुनर्पूंजीकरण का बोझ कम होगा। सीतारमण ने कहा कि आगामी राष्ट्रीय संपत्ति पुनर्गठन कंपनी को ‘बैड बैंक’ नहीं कहा जाना चाहिए, जैसा अमेरिका में कहा जाता है। उ
न्होंने कहा कि बैंकों को तेज-तर्रार बनने की जरूरत है। उन्हें प्रत्येक इकाई की जरूरत को समझना होगा जिससे 400 अरब डॉलर के निर्यात लक्ष्य को हासिल किया जा सके। दरअसल, बैड बैंक एक एसेट रीकंस्ट्रक्शन कंपनी है जिसका काम है। बैंकों से उनके नॉन-परफॉर्मिंग एसेट या बैड लोन को लेना। यह कंपनी बैड एसेट को गुड एसेट में बदलती है।
बैंक जब किसी व्यक्ति या संस्था को लोन देता है और वह व्यक्ति या संस्थान लोन चुकाने में असमर्थ हो जाते हैं, या लंबे समय से किस्त देना बंद कर देते हैं तो उसे बैड लोन या एनपीए मान लिया जाता है। कोई भी बैंक अपने पास बैड लोन रखना नहीं चाहता क्योंकि इससे उनकी बैलेंस शीट खराब होती है। बैंक अपने ग्राहकों को नए कर्ज नहीं दे पाते। इसी मर्ज से छुटकारा देने के लिए एसेट रीकंस्ट्रक्शन कंपनी या बैड बैंक की स्थापना की जा रही है।
बैड बैंक की शुरुआत अमेरिका में हुई थी। 1980 में अमेरिकी बैंक बैड लोन की वजह से डूबने की कगार पर पहुंच गए थे। ऐसे में पहली बार बैड बैंक के कॉन्सेप्ट को जमीन पर उतारा गया. अमेरिका के अलावा, फ्रांस, जर्मनी और स्पेन जैसे देशों में कई साल से बैड बैंक काम कर रहे हैं। इन देशों में यह प्रयोग सफल रहा है और बैंकों को कर्ज से मुक्ति मिली है। इसे देखते हुए भारत में भी इसकी शुरुआत की जा रही है।