मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा की नेता उमा भारती की पहली पहचान प्रवचनकर्ता के तौर पर रही है, मगर उन्होंने अब प्रवचन देना छोड़ दिया है। आखिर उन्होंने प्रवचन देना क्यों छोड़ा, इसकी वजह का खुलासा उन्होंने यहां रविवार को किया।
मन, कर्म और वचन में जब समानता नहीं रही तब मैंने प्रवचन करना छोड़ दिया – उमा भारती
उमा भारती ने चर्चा के दौरान कहा कि मन, कर्म और वचन में जब समानता नहीं रही तब मैंने प्रवचन करना छोड़ दिया, क्योंकि मैं जो कहती हूं उस पर अमल नहीं कर पाती, मैं कहती हूं क्रोध मत करो, मगर मुझे क्रोध आता है। मैं कहती हूं अहंकार मत करो मगर मैं अहंकारी हूं और मैं कहती हूं कि सुख-सुविधा से दूर रहो, मगर मुझे अच्छी-अच्छी गाड़ियां चलाना अच्छा लगता है। ऐसे में मुझे लगा कि मन, वचन और कर्म में समानता नहीं है, इसलिए प्रवचन छोड़ देना चाहिए।
बचपन से ही मैं अध्यात्म से जुड़ी हुई हूं – उमा
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि वह विजयाराजे सिंधिया के जरिए विश्व हिंदू परिषद से जुड़ीं। वह जब बहुत छोटी थीं, उनके पास लोग आकर सवाल-जवाब करते थे। उन्होंने कहा कि बचपन से ही मैं अध्यात्म से जुड़ी हुई हूं, मुझे लोग चमत्कारी बालिका कहते थे।