दीपावली पर जुआ खेलना होता है ”शगुन” जी हाँ , वैसे तो भारत में जुआ खेलना सामाजिक बुराई मानी जाती है और सरकार ने भी इस पर पाबंदी लगा रखी है लेकिन ज्योति पर्व दीपावली पर जुआ खेलने की परम्परा सदियों से चली आ रही है। इस त्योहार पर लोग जुआ शगुन के रूप में खेलते हैं।
मान्यताओं के अनुसार, दीपावली पर जुआ खेलने को बुराई नहीं समझा जाता है। ऐसा माना जाता है कि अधिकतर जुआरी सबसे पहले दीपावली की रात जुआ खेलने की शुरूआत करते हैं। यह भी देखा जाता है कि लोगों ने दीपावली पर शौक या शगुन के रूप में जुआ खेलने की शुरआत की और उसमें हारने पर हारी हुई रकम हासिल करने के लिए आगे भी जुआ खेला जिससे उन्हें इसकी लत लग गई।
समय-समय पर कराये गये सर्वेक्षण में भी यह बात निकाल कर सामने आई है कि दीपावली के दिन देश के लगभग 45 % लोग जुआ खेलते हैं। इनमें करीब 35 प्रतिशत लोग शगुन के तौर पर जुआ खेलते हैं लेकिन 10 % लोग ऐसे होते हैं जो जुआरी होते हैं जो किसी भी मौके पर जुआ खेलने से परहेज नहीं करते हैं।
आपको बता दे कि जुआ खेलने की परम्परा बहुत पुरानी रही है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, दीपावली की रात भगवान शिव के साथ उनकी पत्नी पार्वती ने भी जुआ खेला था। बाद में यह धारणा बन गई कि जो व्यक्ति दीपावली के दिन जुआ खेलेगा, उसके परिवार में पूरे वर्ष सुख-समृद्धि कायम रहेगी।
ऋग्वेदकालीन ग्रंथों में भी है वर्णन ऋग्वेदकालीन ग्रंथों में बताया गया है कि आर्य जुए को आमोद-प्रमोद के साधन के रूप में इस्तेमाल करते थे। उस काल में पुरुषों के लिए जुआ खेलना समय बिताने का साधन था। जुए से जुड़े विभिन्न खेलों की अनेक ग्रंथों में चर्चा की गई है। अथर्ववेद के अनुसार जुआ मुख्यत: पासों से खेला जाता था। अथर्ववेद वरण देव का वर्णन करते हुए कहता है कि वह विश्व को वैसे ही धारण करते हैं जैसे कोई जुआरी पासों से खेलता हो।
आपको बता दे कि कई लोगों की धारणा है कि जुआ खेलने से लक्ष्मी प्रसन्न होती है और भाग्य का दरवाजा खुल जाता है। उन्हें जुआ खेलना शगुन लगता है। आधुनिक बनने की ललक में यह जानते हुए कि ये ताश के मनमोहक पत्ते सिर्फ दिखावा हैं, फिर भी बर्बादी का लबादा खुद ओढ़ लेते हैं।
दीपावली पर जुए की लत कइयों का दिवाला निकाल देती है फिर भी लोगों का मन नहीं भरता और एक के दस और दस के सौ करने के चक्कर में लाखों रुपए हार जाते हैं। मालवा के राजा सेन को जुए में हार जाने के कारण काफी कष्टों का सामना करना पड़ा था और युधिष्ठिर को वनवास भोगना पड़ा था।
चंद्रगुप्त के खजाने एक दम खाली होने के उपरान्त चाणक्य की कूटनीति के कारण धन प्राप्त करने के लिए सैंकड़ों जुआ घर खोलने पड़े। आज के युवा लोग महाभारत युग की परंपराओं को तोडऩा नहीं चाहते। जुआ प्राचीन समय से चला आ रहा है और आज भी जुआरियों की विश्व भर में कमी नहीं है।