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राष्ट्रपति चुनाव की बयानबाजी में कूदे गहलोत, बोले- यह उम्मीदवारों की नहीं……. विचारधाराओं की है लड़ाई

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सोमवार को कहा कि देश के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव उम्मीदवारों की नहीं बल्कि विचारधाराओं की लड़ाई हैं और इसे इसी भावना से लिया जाना चाहिए।

 राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सोमवार को कहा कि देश के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव उम्मीदवारों की नहीं बल्कि विचारधाराओं की लड़ाई हैं और इसे इसी भावना से लिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जब किसी राज्य विशेष से कोई व्यक्ति उम्मीदवार है तो स्वाभाविक रूप से उस राज्य में इसका स्वागत होगा लेकिन मतदान तो विचारधारा के आधार पर ही होता है।
राजस्थान की पूर्व राज्यपाल मार्गरेट अल्वा को उम्मीदवार बनाया गया है
उल्लेखनीय है कि केंद्र में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ को आगामी छह अगस्त को होने वाले उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए अपना उम्मीदवार बनाया है। वे मूल रूप से राजस्थान के हैं। वहीं विपक्ष ने उपराष्ट्रपति पद के लिए राजस्थान की पूर्व राज्यपाल मार्गरेट अल्वा को उम्मीदवार बनाया है।
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धनखड़ का उपराष्ट्रपति चुना जाना लगभग तय माना जा रहा है। देश के उपराष्ट्रपति को चुनने के लिए निर्वाचक मंडल में संसद के दोनों सदनों- लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य शामिल होते हैं और राजग के पास जीत के लिए पर्याप्त संख्या बल है।
चुनाव को लेकर बोले अशोक गहलोत
यहां विधानसभा परिसर में राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए मतदान करने पहुंचे गहलोत से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘‘राजस्थान से वह (धनखड़) उम्मीदवार बने हैं, जैसे एक बार भैरोंसिंह शेखावत साहब बने थे, तो स्वाभाविक है कि जिस राज्य का उम्मीदवार बनता है, उस राज्य में स्वागत तो होता ही है… पर जो मतदान होगा, उसका पैटर्न तो वही रहेगा जो विचारधारा की लड़ाई का है।’’ गहलोत ने कहा कि यही बात राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए लागू रहेगी। गहलोत ने यह भी कहा कि संसद के दोनों सदनों के पीठासीन अध्यक्षों का राजस्थान से होना सुखद संयोग है।
 लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला भी राजस्थान से हैं।
 जानकारी के मुताबिक उन्होंने कहा, ‘‘…विपक्ष की तमाम पार्टियों ने यशवंत सिन्हा को अपना उम्मीदवार बनाया। मैंने पहले भी कहा था कि अगर राजग सरकार और भारतीय जनता पार्टी चाहती, तो उनके सामने एक ऐसा मौका आया था, पांच साल के बाद कि वह विपक्ष को शामिल करती, बातचीत करती और कोशिश करती कि राष्ट्रपति जैसे पद के लिए सर्वसम्मति से उम्मीदवार सामने आएं।’’ उन्होंने कहा कि ऐसा होता तो बेहतर रहता हालांकि एक बार को छोड़कर पहले भी ऐसा नहीं हुआ है।

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