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फलस्तीन को लेकर भारत सरकार को प्रतिबद्धता कमजोर नहीं करनी चाहिए: कांग्रेस

कांग्रेस ने मंगलवार को कहा कि इजरायल-फलस्तीन मुद्दे को लेकर हाल के दिनों में भारत के रुख में बदलाव का संदेश गया है और ऐसे में सरकार को देश के पारंपरिक रुख पर कायम रहते हुए फलस्तीन से जुड़ी प्रतिबद्धता को किसी तरह से कमजोर नहीं करना चाहिए।

कांग्रेस ने मंगलवार को कहा कि इजरायल-फलस्तीन मुद्दे को लेकर हाल के दिनों में भारत के रुख में बदलाव का संदेश गया है और ऐसे में सरकार को देश के पारंपरिक रुख पर कायम रहते हुए फलस्तीन से जुड़ी प्रतिबद्धता को किसी तरह से कमजोर नहीं करना चाहिए। मुख्य विपक्षी दल ने इस बात पर जोर दिया कि इजरायल और फलस्तीन के तौर पर दो देश होने संबंधी समाधान का भारत पक्षधर रहा है तथा अब भी इसी नीति पर अमल किया जाना चाहिए।
कांग्रेस ने एक बयान में कहा, ‘‘हम भारत सरकार के रुख को लेकर बहुत चिंतित है। खबरों से इस बात का संकेत मिलता है कि 16 मई को संयुक्त राष्ट्र परिषद में भारत के वक्तव्य और 20 मई को संयुक्त राष्ट्र महासभा में बयान के बीच सरकार के रुख में बदलाव हुआ। इस बात का व्यापक संदेश गया है कि भारत इस क्षेत्र में अपनी पारंपरिक नीति से दूर हट गया है।’’
कांग्रेस ने कहा कि यह शुरुआती बयान उचित था कि पवित्र अल अक्सा मस्जिद में इजरायली सुरक्षा बलों के प्रवेश के बाद क्षेत्र में शांति भंग हुई। उसने कहा, ‘‘संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में में हमारे बयान से यह संदेश गया कि फलस्तीन को लेकर समय की कसौटी पर परखी गई अपनी प्रतिबद्धता से पलट गया और पूरा समर्थन इजरायल को दे दिया।’’
कांग्रेस ने अपने पहले के बयान की तरह इस बार फिर दोहराया, ‘‘हमास की ओर से किए गए रॉकेट हमले को स्वीकार नहीं किया जा सकता और साथ ही एक ज्यादा मजबूत एवं संगठित सेना की ओर से बड़े पैमाने पर जवाबी कार्रवाई करना भी अस्वीकार्य है, खासकर उस स्थिति में जब महिलाओं और बच्चों समेत आम नागरिक हताहत हो रहे हों।’’
उसने कहा, ‘‘हमारे देश की विदेश नीति दलीय स्थिति से ऊपर रही है और कांग्रेस विदेश में भारत के हितों की रक्षा करने के सरकार के कदमों का समर्थन करती है। इसी मूल भावना के साथ हम यह रुख दोहराते हैं कि इस मामले का दो देशों के अस्तित्व में होने का समाधान हो तथा पूर्वी यरूशलम स्वतंत्र फलस्तीन की राजधानी होनी चाहिए। ’’
कांग्रेस ने कहा कि पश्चिम एशिया में इन दोनों पक्षों को संघर्ष विराम का सम्मान करना चाहिए। उसने इस बात पर जोर दिया, ‘‘कांग्रेस ने कहा कि भारत दुनिया के उन कुछ देशों में शामिल है जो दोनों पक्षों से अच्छे रिश्ते रखता है। हमें किसी फायदे से प्रभावित होकर फलस्तीन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को कमजोर नहीं करना चाहिए।’’
गौरतलब है कि गाजा में इजरायल और हमास के बीच हाल में 11 दिन तक संघर्ष के दौरान कथित तौर पर मानवाधिकार के उल्लंघन और अपराधों की जांच शुरू करने के संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के प्रस्ताव पर वोट डालने से पिछले दिनों भारत समेत 14 देश अनुपस्थित रहे। जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र के लिए भारत के स्थायी प्रतिनिधि इंद्रमणि पांडे ने विशेष सत्र में कहा था कि भारत गाजा में इजरायल और सशस्त्र समूह हमास के बीच संघर्ष विराम में सहयोग देने वाले क्षेत्रीय देशों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के कूटनीतिक प्रयासों का स्वागत करता है।
उन्होंने यह भी कहा था, ‘‘भारत सभी पक्षों से अत्यधिक संयम बरतने और उन कदमों से गुरेज करने की अपील करता है जो तनाव बढ़ाते हों। साथ ही ऐसे प्रयासों से परहेज करने को कहता है जो पूर्वी यरुशलम और उसके आस-पड़ोस के इलाकों में मौजूदा यथास्थिति को एकतरफा तरीके से बदलने के लिए हों।’’

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