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गुरुकुल शिक्षा पद्धति : जातिवाद, सांप्रदायिकता से हो मुक्त : भागवत

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उज्जैन : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघ चालक मोहन भागवत ने भारत की गुरुकुल शिक्षा पद्धति को आचरण करके बच्चों को संपूर्ण मनुष्य बनाने की प्रणाली बताते हुए इस पांच हजार साल पुरानी परंपरा को फिर से जीवित करने का आज आह्वान किया और कहा कि ये गुरुकुल सांप्रदायिकता और जातीय भेदभाव से मुक्त हों और शोध एवं अनुसंधान पर जोर दें।

श्री भागवत ने यहां महर्षि सान्दीपनि राष्ट्रीय वेदविद्या प्रतिष्ठान में तीन दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय गुरूकुल सम्मेलन के शुभारम्भ के मौके पर अपने उद्बोधन में कहा कि गुरुकुल मनुष्य को सौजन्यपूर्ण बनायें यही उद्देश्य होना चाहिए। उन्होंने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य केवल आजीविका नहीं होना चाहिए।

गुरुकुल की पंरपरा को उत्तम कोटि के मनुष्य के निर्माण के लिए आवश्यक बताते हुए उन्होंने कहा कि गुरु के गृह में जाकर गुरु माता के वात्सल्य में पढ़ने के साथ साथ जीवन मूल्यों को गुरु से आचरण आलोक में सत्य को जानने एवं ग्रहण करने का अवसर मिलता था।

कार्यक्रम की अध्यक्षता मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने की। जबकि मुख्य अतिथि के रूप में केन्द्रीय मानवसंसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़कर, विशेष अतिथि केन्द्रीय सामाजिक न्याय मंत्री थावरचन्द गेहलोत, केन्द्रीय मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री डॉ। सत्यपाल सिंह,

मध्यप्रदेश के संस्कृति राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) सुरेन्द, पटवा और सांसद सत्यनारायण जटिया और डॉ चिंतामणि मालवीय, स्वामी संवित सोमगिरि, आचार्य गोविन्ददेव गिरि, स्वामी राजकुमार दास उपस्थित थे। सरसंघचालक ने कहा कि 1200 से 2000 हजार साल पहले की इस परंपरा को दोबारा शुरू करने के प्रयोजन से आज सब यहां एकत्र हैं।

 हमें समझना होगा कि छात्रों, अभिभावकों एवं शिक्षकों से भी बात करनी होगी कि आज के गुरुकुल की शिक्षा कैसी होगी। आज विषय बढ़ गये हैं और कुछ बदल गये हैं। गुरुकुल पद्धति में क्या बदलाव होंगे। जिनका औचित्य नहीं है, उनको हटाना होगा। उन्होंने कहा कि शिक्षा को समाज आधारित स्वायत्त होना चाहिए।

सुशासक उसका पोषण करेगा लेकिन स्वायत्तता समाज आधारित ही होनी चाहिए। उसका समाज को मानवीयता की दिशा देने का दायित्व है। पहले गुरुकुल भी समाज के व्रत से चलते थे। समाज में गुरुओं का आदर कैसे बढ़या जाये, यह भी देखना होगा। इससे पहले डॉ।

भागवत ने मंगलनाथ रोड स्थित सान्दीपनि आश्रम में संस्कृति विभाग द्वारा भगवान श्रीकृष्ण के विद्याध्ययन के समय उनके द्वारा सीखी गई चौंसठ कलाओं पर आधारित दीर्घाओं का अवलोकन किया। इस मौके पर अन्य अतिथि भी मौजूद थे।

अतिथियों ने भगवान श्रीकृष्ण द्वारा सीखी गई 64 कलाओं पर आधारित कलादीर्घाओं की सराहना की और कहा कि दीर्घाओं में इन सभी कलाओं का विषद एवं सुंदर चित्रण किया गया है। भगवान श्रीकृष्ण भाई बलराम एवं सुदामा के साथ यहां गुरु सान्दीपनि के आश्रम में विद्याध्ययन करने आये थे।

इस दौरान चौंसठ कलाएं सीखी थीं। भगवान श्रीकृष्ण ही एकमात्र 64 कलाओं में निपुण बताये गये हैं। सम्मेलन में नेपाल, थाइलैंड, श्रीलंका, इंडोनेशिया आदि देश शामिल हैं। उद्घाटन कार्यक्रम के बाद विविध गुरूकुलों द्वारा मंचीय प्रस्तुतियां दीं गयीं। इनमें प्रमुख रूप से वेद पठन, संस्कृत पठन, संस्कृत नाटिका आदि प्रस्तुत किये गए। सम्मेलन में गुरूकुल प्रदर्शनी भी लगाई गयी है।

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