दिल्ली उच्च न्यायालय ने योग गुरु रामदेव पर लिखी गयी एक किताब की बिक्री और प्रकाशन पर रोक लगा दी है जिसमें दावा किया गया है कि इसमें मानहानिजनक सामग्री है। न्यायमूर्ति अनु मल्होत्रा ने कहा कि किसी व्यक्ति के ‘‘बोलने एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की कीमत पर’’ किसी अन्य व्यक्ति के सम्मानपूर्वक जीवन जीने के अधिकार को ‘‘सूली पर नहीं चढ़ाया जा सकता।’’
‘‘गॉडमैन टू टायकून’’ नामक किताब पर रामदेव की याचिका पर अदालत का यह फैसला आया है। याचिका में कहा गया है कि यह किताब कथित तौर पर रामदेव के जीवन पर है जिसमें अपमानजनक सामग्री है और इससे उनके आर्थिक हित के साथ ही उनकी छवि को नुकसान होगा।
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अदालत ने कहा, ‘‘भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत किसी व्यक्ति के सम्मानजनक जीवन जीने के अधिकार को किसी अन्य व्यक्ति के वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की कीमत पर सूली पर नहीं चढ़ाया जा सकता है...।’’
इसने कहा कि दोनों को संतुलित करना होगा ताकि किसी व्यक्ति के सम्मान को ठेस नहीं पहुंचे और पहले चूंकि इसी मुद्दे पर किताब प्रकाशित हो चुकी है लेकिन इसे फिर से प्रकाशित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती क्योंकि प्रथमदृष्ट्या इसमें उनके खिलाफ आक्षेप हैं।
रामदेव ने निचली अदालत के फैसले को दरकिनार करने के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, जिसने किताब के प्रकाशन और बिक्री पर प्रतिबंध हटाने के आदेश दिए थे।
अतिरिक्त सिविल न्यायाधीश ने पिछले वर्ष अगस्त में प्रकाशक जगरनॉट बुक्स को अगले आदेश तक किताब के प्रकाशन और बिक्री पर रोक लगा दी थी। इसने अमेजन इंडिया और फ्लिपकार्ट इंटरनेट प्राईवेट लिमिटेड को किताबों की ऑनलाइन बिक्री पर भी रोक लगा दी थी।
बहरहाल इस वर्ष 28 अप्रैल को अतिरिक्त वरिष्ठ सिविल न्यायाधीश ने प्रतिबंध हटा दिया था। पत्रकार प्रियंका पाठक नारायण ने यह किताब लिखी है।
उच्च न्यायालय ने किताब के प्रकाशन पर रोक लगाते हुए कहा कि जिस व्यक्ति के बारे में किताब लिखी गई है वह ‘‘जीवित व्यक्ति’’ है जो सम्मानजनक व्यवहार का हकदार है।