टोक्यो ओलंपिक 2020 भारत के लिए सबसे शानदार रहा है। भारत ने वेटलिफ्टिंग में सिल्वर मेडल से शानदार शुरूआत के बाद जेवलिन थ्रो में गोल्ड मेडल हासिल कर ऐतिहासिक समापन किया। वेटलिफ्टिंग में सिल्वर मेडल लेकर मीराबाई चानू ने टोक्यो ओलंपिक की शुरुआत की, वहीं जेवलिन थ्रो में नीरज चोपड़ा ने गोल्ड जीतकर एक शानदार समापन किया।
ट्रैक एवं फील्ड कॉम्पीटीशन में भारत को पहला मेडल मिला जो 13 साल बाद पहला गोल्ड मेडल पदक भी था। इसके अलावा हॉकी में 41 वर्षों से चला आ रहा मेडल का इंतजार भी खत्म हुआ, वेटलिफ्टिंग में पहला सिल्वर मैडल पदक और नौ वर्षों बाद मुक्केबाजी में पहला मेडल भारत की झोली में आया जबकि बैडमिंटन स्टार पीवी सिंधू दो ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली महिला खिलाड़ी बनीं।
ज्यादातर पदार्पण कर रहे खिलाड़ियों ने पोडियम स्थान हासिल किए और एक ओलंपिक में सबसे ज्यादा मेडल भी मिले और देश के लिए इतना सबकुछ एक ही ओलंपिक के दौरान हुआ। और यह सब भी उस ओलंपिक में हुआ जिन्हें उद्घाटन समारोह से पहले कोविड-19 महामारी के कारण ‘मुश्किलों से भरे’ खेल माना जा रहा था। इस महामारी के कारण लगे लॉकडाउन के चलते ही इन्हें एक साल के लिए स्थगित किया गया जबकि ज्यादातर ट्रेनिंग और टूर्नामेंट का कार्यक्रम बिगड़ गया था।
ओलंपिक खेलों में प्रतिस्पर्धाओं के पहले दिन ही मीराबाई ने देश का मेडल लिस्ट में खाता खोल दिया जो पहले कभी नहीं हुआ था। मणिपुर की यह वेटलिफ्टर 4 फीट 11 इंच की है लेकिन उसने 202 किग्रा (87+115) का वजन उठाकर सिल्वर मेडल हासिल किया और दुनिया को दिखा कि क्यों आकार मायने नहीं रखता और इसे मायने नहीं रखना चाहिए।
वह अपने प्रदर्शन के दौरान आत्मविश्वास से भरी हुई थीं जबकि पांच साल पहले वह आंसू लिए निराशा में इस मंच से विदा हुई थी जिसमें वह एक भी वैध वजन नहीं उठा सकी थीं। और 24 जुलाई को वह वेटलिफ्टिंग में पहली सिल्वर मेडल विजेता बनकर मुस्कुरा रही थीं। देश को इसी तरह की शुरूआत की जरूरत थी लेकिन इसके बाद मेडल्स की शांति छा गयी।
कुछ प्रबल दावेदार प्रभाव डाले बिना ही बाहर हो गए, जिसमें सबसे बड़ी निराशा 15 सदस्यीय मजबूत शूटिंग टीम से मिली। सिर्फ सौरभ चौधरी ही फाइनल्स में जगह बना सके और वह भी पोडियम तक नहीं पहुंच सके जिससे उनकी तैयारियों पर काफी सवाल उठाए गए। किसी के पास भी स्पष्ट जवाब नहीं था कि क्या गलत हुआ। पर इसके बाद गुटबाजी, अहं के टकराव और मतभेदों की बातें सामने आने लगी।
ऐसा लग रहा था कि भारतीय अभियान इससे उबर नहीं सकेगा। लेकिन पीवी सिंधु ने ब्रॉन्ज़ मेडल जीतकर चीजों को पटरी पर ला दिया। हैदराबादी बैडमिंटन खिलाड़ी 2016 ओलंपिक में अपने रजत का रंग बेहतर करना चाहती थीं। लेकिन वह ऐसा तो नहीं कर सकीं, पर दो ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली महिला खिलाड़ी बन गयीं।
इसके बाद दोनों (पुरूष और महिला) हॉकी टीमों ने शुरूआती झटकों के बावजूद टक्कर देने का जज्बा दिखाया। महिला खिलाड़ियों ने भारतीय दल के अभियान की जिम्मेदारी संभालना जारी रखा जिसमें मुक्केबाजी रिंग में असम की 23 साल की लवलीना बोरगोहेन (69 किग्रा) ने चार अगस्त को कांस्य पदक हासिल किया।
अगले ही दिन रवि कुमार दहिया ओलंपिक में रजत हासिल करने वाले दूसरे भारतीय पहलवान बने। वह ओलंपिक में पदार्पण पर ऐसा करने वाले पहले खिलाड़ी बने। इससे कुछ ही घंटों पहले कांसे से पुरुष हॉकी टीम का पदक का लंबे समय से चला आ रहा इंतजार खत्म हुआ।
मनप्रीत सिंह और उनकी टीम ने जर्मनी के खिलाफ प्ले-ऑफ में वापसी करते हुए ऐसी पीढ़ी के लिए देश में हॉकी के फिर से फूलने फलने के बीज बो दिए जिसने सिर्फ आठ स्वर्ण पदक जीतने की दास्तानें सुनी थीं और खेल की दर्दनाक गिरावट को देख रही थी।
इसे देखकर आंखों में आंसू थे, खुशी थी और सबसे बड़ी चीज गर्व था क्योंकि हॉकी भारत का खेल था लेकिन इसके गिरते स्तर ने क्रिकेट इसकी जगह लेता चला गया। और अभियान शानदार समापन की ओर बढ़ रहा था जिसमें नीरज चोपड़ा के जेवलिन थ्रो के गोल्ड ने चार चांद लगा दिए जिससे भारत ने 13 साल बाद गोल्ड और एथलेटिक्स में पहला मेडल हासिल किया।
गोल्ड मेडल के दावेदार माने जा रहे बजरंग पूनिया मायूसी के बाद कुश्ती मैट पर ब्रॉन्ज़ पदक जीतने में सफल रहे। फिर ‘चौथे स्थान’ के फेर ने भी कुछ खिलाड़ियों की उम्मीद तोड़ी जिसमें गोल्फर अदिति अशोक शामिल रहीं। भारतीय महिला हॉकी टीम भी पोडियम पर स्थान से करीब से चूक गयीं। इसलिए भारत का ओलंपिक में प्रदर्शन इन सात पदकों से ज्यादा महत्वपूर्ण रहा। इसमें आत्मविश्वास की चमक थी जो चोपड़ा के प्रदर्शन में दिखी।