संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) में पाकिस्तान के झूठे आरोपों का भारत ने करारा जवाब दिया। अपने पुराने रुख को दोहराते हुए भारत ने कहा कि कश्मीर हमारा आंतरिक मसला है और पाकिस्तान झूठ की फैक्ट्री चला रहा है।
विदेश मंत्रालय की सेक्रेटरी (ईस्ट) विजय ठाकुर सिंह ने जिनेवा में यूएनएचआरसी में जम्मू-कश्मीर पर पाकिस्तान के झूठ को बेनकाब कर दिया।
उन्होंने कहा कि यह एक संप्रभु निर्णय और भारत का आंतरिक मामला था। कोई भी देश अपने आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप स्वीकार नहीं कर सकता है।
सीमा पार आतंकवाद के खतरों को देखते हुए लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कश्मीर में अस्थायी एहतियाती कदम उठाये गये।
हमें उन लोगों की निंदा करनी चाहिए जो मानवाधिकारों की आड़ में दुर्भावनापूर्ण राजनीतिक एजेंडों के लिए इस मंच का दुरुपयोग कर रहे हैं।
जम्मू कश्मीर प्रशासन बुनियादी सेवाओं, संस्थानों के सामान्य कामकाज, आवागमन और लगभग पूर्ण संपर्क सुनिश्चित कर रहा है।
विदेश मंत्रालय के पूर्वी मामलों की सचिव विजय ठाकुर सिंह ने पाकिस्तान की ओर स्पष्ट संकेत करते हुए कहा कि मानवाधिकारों के बहाने दुर्भावनापूर्ण राजनीतिक एजेंडे के लिए संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) का दुरुपयोग करने वालों की निन्दा किए जाने की आवश्यकता है।
उन्होंने यूएनएचआरसी के 42वें सत्र में भारत के खिलाफ पाकिस्तान के आरोपों को खारिज किया और कहा, ‘‘जब वास्तव में वे खुद षड्यंत्रकारी होते हैं तो वे स्वयं को पीड़ित बताने लगते हैं।’’
सिंह ने कहा कि भारत द्वारा हाल में जम्मू कश्मीर में उठाए गए विधाय कदम देश के संविधान के आधारभूत ढांचे के अनुरूप हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘ये निर्णय हमारी संसद ने व्यापक चर्चा के बाद किए जिसका टेलीविजन पर प्रसारण हुआ और इसे व्यापक समर्थन मिला। हम दोहराना चाहते हैं कि संसद द्वारा पारित अन्य कानूनों की तरह यह एक संप्रभु निर्णय है, जो पूरी तरह भारत का आंतरिक मामला है। कोई भी देश अपने आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप स्वीकार नहीं कर सकता है तथा भारत तो बिल्कुल भी नहीं।’’
वही , असम में एनआरसी एक वैधानिक, पारदर्शी, भेदभावरहित कानूनी प्रक्रिया है और इसकी निगरानी उच्चतम न्यायालय द्वारा की गई है।
पाकिस्तान ने इससे पूर्व मांग की कि यूएनएचआरसी को कश्मीर में स्थिति को लेकर अंतरराष्ट्रीय जांच करानी चाहिए। इसने विश्व निकाय से आग्रह किया कि भारत द्वारा जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म किए जाने के बाद उसे ‘‘निष्क्रिय’’ नहीं रहना चाहिए।