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भारत ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए विकसित देशों से वित्तीय मदद के लिए आवाज उठाई

पेरिस समझौते का लक्ष्य इस सदी के अंत तक वैश्विक तापमान में वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस से कम रखने का लक्ष्य है।

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के होने वाले दो अहम सम्मेलनों से पहले भारत ने पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल करने में विकसित देशों की ओर से वित्तीय और तकनीकी सहायता देने के लिए आवाज उठाई है। पेरिस समझौते का लक्ष्य इस सदी के अंत तक वैश्विक तापमान में वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस से कम रखने का लक्ष्य है। 
केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए निर्णायक कदम उठा रहा है , जो पेरिस समझौते -2015 का केंद्र है। 

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एक कार्यक्रम में शामिल होने आए जावड़ेकर ने कहा, ‘‘चिली में हम जब अगली सीओपी (पक्षकारों का सम्मेलन) में मिलेंगे तब हमारा रुख प्रत्येक देश से राष्ट्रीय स्तर पर उत्सर्जन कम करने की प्रतिबद्धता का अनुपालन करने और विकसित देशों की ओर से वित्तीय और तकनीकी सहायता मुहैया कराए जाने पर होगा, जो विकासशील विश्व के लिए महत्वपूर्ण है। 
जावड़ेकर ने सरकार के ‘स्वच्छ भारत अभियान’ का हवाला देते हुए कहा कि एक बार इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक पर रोक, सौर और पवन ऊर्जा का विस्तार, पर्यावरण की रक्षा के लिए अधिक वृक्षारोपण जैसे कदमों को संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न मंचों पर रेखांकित किया जाएगा। इस महीने संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस जलवायु कार्रवाई सम्मेलन की मेजबानी करेंगे। 
वहीं दिसंबर में चिली की मेजबानी में संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन होगा। केंद्रीय मंत्री ने कहा, यह सच है कि जलवायु परिवर्तन के लिए विकसित देश जिम्मेदार हैं। करीब 70 फीसदी ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन विकसित देशों की वजह से होता है जबकि भारत की हिस्सेदारी मात्र तीन फीसदी है। 
विकसित देशों के लोग अधिक उपभोग कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र के शीर्ष अधिकारियों ने बताया कि विश्व निकाय ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए 2020 से विकसित देशों से विकासशील देशों को 100 अरब डॉलर हस्तांतरित करने की प्रतिबद्धता जताई है। 

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