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भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नाबार्ड ने कृषि के क्षेत्र में किया समझौता

चार हजार फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गनाइजेशन को आर्थिक मदद दी जा रही है। एक एफपीओ को तीन से पांच साल के लिए 20 लाख रुपये की मदद दी जाती है।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) और राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) ने जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर कृषि में जलवायु सहनशील प्रौद्योगिकी के विकास, डेयरी, खाद्य प्रसंस्करण, जल संरक्षण, स्वयं सहायता समूह, कृषि वानिकी और पूर्वोत्तर राज्यों में जैविक कृषि को बढ़वा देने के लिए सहमति पत्र पर शुक्रवार को हस्ताक्षर किये। 
आईसीएआर के महानिदेशक डॉ त्रिलोचन महापात्रा और नाबार्ड के अध्यक्ष हर्ष कुमार वनमाला ने दोनों संस्थाओं के वरिष्ठ अधिकारियों की उपस्थिति में सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किये। उन्होंने कहा कि दोनों संस्था पहले से कृषि और ग्रामीण विकास के क्षेत्र में अलग-अलग काम कर रहे थे लेकिन इस समझौते से इन क्षेत्रों में प्रतिबद्धता और तेजी से काम किया जा सकेगा। 
डॉ महापात्रा ने कहा कि नयी नयी कृषि प्रौद्योगिकी की जानकारी नाबार्ड के अधिकारियों को दी जायेगी और जरूरत होने पर उन्हें प्रशिक्षण भी दिया जायेगा। दोनों संस्थाओं के उद्देश्य और लक्ष्य एक ही हैं। महाराष्ट्र में जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर 5000 गांवों का चयन किया गया है, जहां बदली हुयी परिस्थिति में बेहतर खेती की जा सके। 
उन्होंने कहा कि जल संरक्षण और जल संचय के लिए प्रौद्योगिकी है लेकिन इसके लिए लोगों को जागरुक करने तथा निर्माण कार्य के लिए आर्थिक मदद की जरूरत है। सहकारिता के माध्यम से श्वेत क्रांति को सफल बनाया गया जिसे डेयरी के माध्यम से और आगे बढ़या जा सकता है।
डॉ महापात्रा ने कहा कि देश में हरे चारे की कमी है और साइलेज का निर्माण बहुत कम हो रहा। बगीचों में चारे के उत्पादन को बढ़वा दिया जा सकता है। उन्होंने नाबार्ड से कृषि वानिकी के क्षेत्र में निवेश बढ़ने का अनुरोध किया। 
डॉ वनमाला ने कहा कि आईसीएआर से नयी नयी पौद्योगिकी की जानकारी मिलेगी और विभिन्न-विभिन्न विषयों की विशेषज्ञता की जानकारी मिलेगी। नाबार्ड बैंक की शुरुआत 1982 में 4500 करोड़ रुपये की पूंजी से हुयी थी जिसका कारोबार बढ़कर पांच लाख करोड़ रुपये का हो गया है। नाबार्ड ने प्रधानमंत्री सिंचाई योजना के लिए 36000 करोड़ रुपये की सहायता दी है। इसके साथ ही सूक्ष्म सिंचाई कोष बनाया जा रहा है। 
उन्होंने कहा कि ग्रामीण आवास योजना को भरपूर मदद दी जा रही है। यह बैंक ग्रीन क्लाइमेंट फंड भी शुरू करेगा। आदिवासियों को उनके घरों के पास की जमीन में फलदार वृक्ष लगाने के लिए सहायता दी जा रही है। चार हजार फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गनाइजेशन को आर्थिक मदद दी जा रही है। एक एफपीओ को तीन से पांच साल के लिए 20 लाख रुपये की मदद दी जाती है। 
डॉ वनमाला ने कहा कि 80 लाख स्वयं सहायता समूह को भी राशि उपलब्ध करायी गयी है। एक स्वयं सहायता समूह में 10 महिलायें होती है और उन्हें दो लाख रुपये की सहायता दी जाती है।

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