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ISRO के पहले छोटे उपग्रह प्रक्षेपण को खामी का करना पड़ा सामना

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन को छोटे उपग्रहों को प्रक्षेपित करने के बाजार का लाभ उठाने की योजना को झटका लगा है क्योंकि उसके द्वारा इस श्रेणी के उपग्रहों को छोड़ने के लिए प्रक्षेपित पहले रॉकेट को विसंगति का सामना करना पड़ा है।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) को छोटे उपग्रहों को प्रक्षेपित करने के बाजार का लाभ उठाने की योजना को झटका लगा है क्योंकि उसके द्वारा इस श्रेणी के उपग्रहों को छोड़ने के लिए प्रक्षेपित पहले रॉकेट को विसंगति का सामना करना पड़ा है।
इसरो के अध्यक्ष एस.सोमनाथ ने रविवार को कहा कि रॉकेट के तय रास्ते से हटने की वजह से उपग्रह गलत कक्षा में स्थापित हो गया है और इसकी वजह से ‘‘अब यह उपयोग के लायक’’ नहीं है।
उन्होंने हालांकि, स्पष्ट किया कि इस ‘विसंगति’ को छोड़ दे तो पूरे ‘‘रॉकेट के बनावट’’ ने सटीक काम किया और वैज्ञानिक योजना के तहत रॉकेट द्वारा प्रत्येक स्तर पर किए गए प्रदर्शन से खुश हैं।
उल्लेखनीय है कि पहला 34 मीटर लंबा लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (एसएसएलवी) ने एक पृथ्वी अवलोकन उपग्रह (ईओएस-2) और छात्रों द्वारा विकसित एक उपग्रह को स्थापित करने के अभियान के तहत रविवार सुबह आसमान में बादल छाए रहने के बीच सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से नौ बजकर 18 मिनट पर उड़ान भरी। 34 मीटर लंबे रॉकेट ने रविवार को करीब साढ़े सात घंटे तक चली उलटी गिनती के बाद उड़ान भरी।
नारंगी रंग की लपटों और गहरे रंगे का धुआं छोड़ता रॉकेट रवाना हुआ और उसे दो उपग्रहों को उड़ान भरने के करीब 13 मिनट के भीतर 356 किलोमीटर की ऊंचाई पर मौजूद कक्षा में स्थापित करना था।
हालांकि, वैज्ञानिक को रॉकेट से उपग्रह के अलग होने के बाद भी डाटा प्राप्त नहीं हुई।
सोमनाथ ने बाद में जारी वीडियो संदेश में बताया कि रॉकेट अपना रास्ता भटक गया था और इस ‘विसंगति’ की वजह से उसने उपग्रहों को पृथ्वी की 356/76 किलोमीटर निचली कक्षा में स्थापित किया है।
इसरो की वेबसाइट पर जारी वीडियो संदेश में उन्होंने कहा, ‘‘ मिशन में रॉकेट का प्रदर्शन बहुत अच्छा था और अंतिम समय में जब वह 356 किलोमीटर की ऊंचाई की कक्षा में पहुंचा और ईओएस-2 और आजादीसैट उससे अलग हुए। तभी उपग्रहों को कक्षा में स्थापित करने में हुई विसंगति की जानकारी मिली।
सोमनाथ ने कहा, ‘‘उपग्रह गोलाकार कक्षा के बजाय अंडाकार कक्षा में स्थापित हो गए हैं। हमारा लक्ष्य उसे 356 किलोमीटर के गोलाकार कक्षा में स्थापित करने की थी लेकिन यह 356/76 किलोमीटर अंडाकार कक्षा में स्थापित हो गया है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘76 किलोमीटर अंडाकार कक्षा अधिकतर बिंदुओं पर सबसे निचला और धरती की सतह के करीब का कक्षा है। वायुमंडल की वजह से ऐसी कक्षा में स्थापित उपग्रह लंबे समय तक वहां नहीं रह सकते हैं और गिर जाएंगे। वे (दोनों उपग्रह) पहले ही कक्षा से नीचे आ गए हैं और अब काम के लायक नहीं हैं।’’
इसरो प्रमुख ने कहा, ‘‘पूरे मामले की जांच की जा रही है।’’ उन्होंने बताया कि विशेषज्ञ समिति गठित की गई है जो ‘‘विशेष’’ समस्या की पहचान करेगी और अगले कुछ दिनों में विस्तृत आकलन पेश करेगी।
उन्होंने कहा, ‘‘वे सिफारिशों के साथ आएगी जिसे हम बिना देरी के लागू करेंगे।’’
पूरे मिशन के बारे में सोमनाथ ने कहा कि रॉकेट ने ‘बहुत अच्छा प्रदर्शन’’किया और एक ‘विसंगति’ के अलावा कोई समस्या नहीं आई है।
उन्होंने कहा, ‘‘हमे कोई अन्य विसंगति नहीं दिखी है।’’ इसरो प्रमुख ने कहा, ‘‘इस रॉकेट में शामिल किए गए प्रत्येक नए तत्व ने बहुत बेतहर प्रदर्शन किया जिसमें प्रणोदक स्तर, कुल मिलाकर उपकरण, एयरोडायनेमिक प्रणाली, निम्न लागत वाली इलेक्ट्रॉनिक नियंत्रण प्रणाली और पूरे रॉकेट का ढांचा शामिल है। सभी ने सही काम किया और हम इससे बहुत खुश हैं।’’
गौरतबल है कि वैज्ञानिकों ने पृथ्वी की निम्न कक्षा में ‘‘मांग के अनुरूप प्रक्षेपण’’ आधार पर उपग्रहों को स्थापित करने की योजना बनाई है।
यह रॉकेट इसरो को 500 किलोग्राम तक के उपग्रहों को 500 किलोमीटर की कक्षा में स्थापित किए जाने वाले संगठन के तौर पर इंगित करता है।
इसरो की योजना 135 किलोग्राम वजनी ईओएस-02 उपग्रह को विषुवत रेखा के पास 350 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थापित करने की थी, जबकि आजादीसैट आठ किलोग्राम वजनी आठयू क्यूबसेट है। आजादीसैट’ में 75 अलग-अलग उपकरण हैं, जिनमें से प्रत्येक का वजन लगभग 50 ग्राम है। ‘देशभर के ग्रामीण क्षेत्रों की छात्राओं को इन उपकरणों के निर्माण के लिए इसरो के वैज्ञानिकों द्वारा मार्गदर्शन प्रदान किया गया था, जो ‘स्पेस किड्स इंडिया’ की छात्र टीम के तहत काम कर रही हैं।
वहीं, एसएसएलवी 10 से 500 किलोग्राम वजनी छोटे, माइक्रो या नैनो उपग्रह को 500 किलोमीटर तक की कक्षा में स्थापित करने में सक्षम है।
यह पहली बार नहीं है जब इसरो को अपने पहले प्रक्षेपण अभियान में झटका लगा है। अंतरिक्ष एजेंसी के लिए सबसे भरोसेमंद माने वाले जाने प्रक्षेपण यान पीएसएलवी की 20 सितंबर 1993 को पहली उड़ान सफल नहीं रही थी।

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