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यह समझने की जरूरत है कि कानून का पेशा विधि स्नातकों की स्वभाविक पसंद क्यों नहीं है : रंजन गोगोई

कानून निर्माण या सुधार के क्षेत्र में कौशल कर समाज की सेवा करे तथा व्याख्यान, सम्मेलन का आयोजन करें एवं कानूनी ज्ञान का प्रसार करे।

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने शनिवार को कहा कि वकीलों की भूमिका और कामकाज पर गौर करने एवं यह समझने की जरूरत है कि क्यों बेहद आकर्षक और अवसर होने के बावजूद कानून का पेशा किसी विधि स्नातक की स्वाभाविक पसंद नहीं है। 
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि अधिवक्ता वादियों के वकील और सलाहकार की तरह कार्य करते हैं और उन्हें कानून के तहत अपने अधिकारों को सुरक्षित रखने में मदद करते हैं। अपने मुवक्किलों के लिए काम करते हुए वे कानून की व्याख्या और उसका आकार तय करते हैं तथा न्यायाधीशों को कानूनी प्रस्तावों के निर्धारण में मदद करते है जिनका भावी पीढ़ियों पर बाध्यकारी प्रभाव पड़ता है। 
यहां राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के सातवें वार्षिक दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए न्यायमूर्ति गोगोई ने कहा कि विधि विद्यालयों का उद्देश्य ऐसे वकीलों को सामने लाना है जो बार के संभावित नेता, पीठ में न्यायविद् और शिक्षकों के रूप में देश की सेवा करें। 
उन्होंने कहा कि लेकिन अब आत्मनिरीक्षण और विश्लेषण का समय है कि क्या विधि एवं मानविकी संकाय की संयुक्त डिग्री वाला पांच वर्षीय कानून पाठ्यक्रम अपनी आकांक्षाओं को पूरी कर पाया है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि पांच वर्षीय विधि विद्यालय मॉडल अपने उद्देश्य की प्राप्ति में पूरी तरह विफल नहीं रहा है बल्कि यह अपेक्षित बदलाव नहीं ला पाया। 
उन्होंने कहा कि इस पांच वर्षीय मॉडल का लक्ष्य सामाजिक रूप से ऐसे सजग वकीलों को तैयार करना है जो वकालत, कानूनी सहायता, कानून निर्माण या सुधार के क्षेत्र में कौशल कर समाज की सेवा करे तथा व्याख्यान, सम्मेलन का आयोजन करें एवं कानूनी ज्ञान का प्रसार करे। 
उन्होंने कहा, ‘‘ लेकिन व्यक्ति को अवश्य ही वकीलों की भूमिका एवं कामकाज पर गौर करना होगा और यह समझना होगा कि क्यों बेहद आकर्षक और अवसरों के बावजूद कानून का पेशा विधि स्नातकों की स्वभाविक पसंद नहीं है।’’ 
कार्यक्रम में दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल, न्यायमूर्ति राजीव सहाय एंडलॉ, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया आदि उपस्थित थे। 

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