देश में कोर्ट-कचहरी का नाम लेते ही लोगों के मन में यह ख्याल आता है कि इसमें काफी समय लगने वाला है। न जाने कितनी तारीखें होंगी जिन पर आपको उपस्थित होना होगा। डेट ऑन डेट डायलॉग भी कोर्ट के लिए याद रखा जाएगा। इसी तरह के शब्दों का इस्तेमाल सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को किया था। एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हम नहीं चाहते कि सुप्रीम कोर्ट तारीख पे तारीख अदालत बने।
दरअसल, न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने फिल्म ‘दामिनी’ के एक लोकप्रिय संवाद को दोहराते हुए दीवानी अपील में एक हिंदू पुजारी की ओर से पेश वकील से कहा, ”यह शीर्ष अदालत है और हम चाहते हैं कि इस अदालत की प्रतिष्ठा बनी रहे।” फिल्म ‘दामिनी’ में अभिनेता सनी देओल ने लगातार स्थगन और मामले में नई तारीख दिए जाने पर अपना गुस्सा जाहिर करते हुए ‘तारिख पे तारीख’ के बारे में बात की थी।
आधी रात को जज तैयारी करते हैं…
पीठ ने कहा कि जहां न्यायाधीश मामले की फाइल को ध्यान से पढ़ते हुए और अगले दिन की सुनवाई की तैयारी करते हुए आधी रात तक तैयारी करते रहते हैं, वहीं वकील आकर स्थगन की मांग करते हैं। पीठ ने सुनवाई पर रोक लगा दी और बाद में, जब इस मामले में दलीलें पेश करने वाले वकील पेश हुए, तो पीठ ने अपील में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और पुजारी को उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के लिए कहा।
हाईकोर्ट की टिप्पणी को हटाने से इनकार
एक अन्य मामले में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने एक वकील के खिलाफ एक उच्च न्यायालय द्वारा की गई टिप्पणी को रद्द करने से इनकार कर दिया, यह कहते हुए कि उच्च न्यायालय को अदालत कक्ष में अनुशासन बनाए रखना है और यह शीर्ष अदालत पर निर्भर है कि वह अपना अनुशासन बनाए रखे। गैर-पेशेवर आचरण पर उन टिप्पणियों को हटाना उचित नहीं होगा। संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत याचिका दायर करने पर पीठ ने दुख जताया और कहा कि इस याचिका में मांगी गई राहत नहीं दी जा सकती। अनुच्छेद 32 मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए सर्वोच्च न्यायालय जाने के अधिकार से संबंधित है।
जज कड़ी मेहनत कर रहे, वकील बहस को तैयार ही नहीं….
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, “इस तरह के छोटे-मोटे मामलों की वजह से सुप्रीम कोर्ट अप्रभावी होता जा रहा है। अब कड़ा संदेश देने का समय है नहीं तो चीजें मुश्किल हो जाएंगी। ऐसी याचिकाओं पर बिताए गए हर 5 से 10 मिनट में एक सच्चे वादी का समय निकल जाता है, जो सालों से न्याय की प्रतीक्षा कर रहा है। उन्होंने कहा कि आजकल विभिन्न दिनों में लगभग 60 मामले सूचीबद्ध हैं, जिनमें से कुछ देर रात सूचीबद्ध हैं। उन्होंने नाराजगी जताते हुए कहा, ‘मुझे केस की फाइल पढ़ने के लिए सुबह साढ़े तीन बजे उठना पड़ता है। जज काफी मेहनत कर रहे हैं, लेकिन वकील अपनी बात रखने को तैयार नहीं हैं। यह सही नहीं है।’