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के के वेणुगोपाल ने कहा- दो शीर्षस्थ अफसर लड़ रहे थे और सारा विवाद तूल पकड़ गया

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नई दिल्ली : केन्द्र ने केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के दो शीर्ष अधिकारियों आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना के बीच छिड़ी जंग में हस्तक्षेप करने की कार्रवाई को बुधवार को आवश्यक बताते हुये कहा कि इनके झगड़े की वजह से देश की प्रतिष्ठित जांच एजेन्सी की स्थिति बेहद हास्यास्पद हो गयी थी। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति के एम जोसफ की पीठ के समक्ष केन्द्र की ओर से अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने अपनी बहस जारी रखते हुये कहा कि इन अधिकारियों के झगड़े से जांच एजेन्सी की छवि और प्रतिष्ठा प्रभावित हो रही थी।

अटॉर्नी जनरल ने कहा कि केन्द्र का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि जनता में इस प्रतिष्ठित संस्थान के प्रति भरोसा बना रहे। वेणुगोपाल ने कहा, ‘‘जांच ब्यूरो के निदेशक और विशेष निदेशक के बीच विवाद इस प्रतिष्ठित संस्थान की निष्ठा और सम्मान को ठेस पहुंचा रहा था। दोनों अधिकारी, आलोक कुमार वर्मा और राकेश अस्थाना एक दूसरे से लड़ रहे थे और इससे जांच ब्यूरो की स्थिति हास्यास्पद हो रही थी।’’ अटॉर्नी जनरल ने कहा कि इन दोनों अधिकारियों के बीच चल रही लड़ाई से सरकार अचम्भित थी कि ये क्या हो रहा है। वे बिल्लियों की तरह एक दूसरे से लड़ रहे थे। वेणुगोपाल ने कहा कि दोनों के बीच चल रही इस लड़ाई ने अभूतपूर्व और असाधारण स्थिति पैदा कर दी थी।

ऐसी स्थिति में सरकार के लिये इसमें हस्तक्षेप करना बेहद जरूरी हो गया था। शीर्ष अदालत आलोक वर्मा को जांच ब्यूरो के निदेशक के अधिकारों से वंचित करने और उन्हें अवकाश पर भेजने के सरकार के निर्णय के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही है। इस मामले में गैर सरकारी संगठन कॉमन कॉज, लोकसभा में विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और अन्य ने भी याचिका एवं आवेदन दायर कर रखे हैं। इस मामले में बहस आज भी अधूरी रही और सुनवाई कल भी होगी।

न्यायालय ने 29 नवंबर को कहा था कि वह पहले इस सवाल पर विचार करेगा कि क्या सरकार को किसी भी परिस्थिति में जांच ब्यूरो के निदेशक को उसके अधिकारों से वंचित करने का अधिकार है या उसे निदेशक के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों में कोई कार्रवाई करने से पहले प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली चयन समिति के पास जाना चाहिए था। न्यायालय ने इससे पहले यह स्पष्ट कर दिया था कि वह जांच एजेन्सी के दोनों शीर्ष अधिकारियों से संबंधित आरोपों और प्रत्यारोपों पर गौर नहीं करेगा। आलोक वर्मा का दो साल का कार्यकाल 31 जनवरी, 2019 को समाप्त हो रहा है।

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