प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मंत्रियों की शपथग्रहण की सूची में नये चेहरे के रूप में कैलाश चौधरी का नाम शामिल होने से जहां राजस्थान के राजनीतिक पंडित चौंक गये हैं, वहीं ओलम्पियन और राज्यमंत्री राज्यवर्द्धनसिंह का नाम सूची से नदारद होने से वे हैरान हैं।
राजनीतिज्ञ ही नहीं बल्कि आमजन में भी मंत्रिमंडल को लेकर उत्सुकता थी। राजस्थान के जोधपुर संसदीय क्षेत्र में अशोक गहलोत के पुत्र वैभव को हराकर लगातार दूसरी बार निर्वाचित गजेंद, सिंह शेखावत का नाम मंत्री पद के लिये तय माना रहा था और उन्हें केबिनेट मंत्री का दर्जा दिये जाने से भी किसी को आश्चर्य नहीं हुआ, लेकिन अर्जुनराम मेघवाल के उन समर्थकों को थोड़ निराशा हुई जो उनके प्रोन्नत होने की उम्मीद कर रहे थे।
बीकानेर संसदीय क्षेत्र से लगातार तीसरी बार सांसद चुने गये जलसंसाधन राज्यमंत्री और पूर्व वित्त राज्यमंत्री अर्जुनराम मेघवाल राजस्थान में पार्टी का दलित चेहरा माने जाते हैं। उन्हें पार्टी मंत्रिमंडल से बाहर रखने का जोखिम नहीं उठा सकती। लिहाजा उन्हें फिर से राज्यमंत्री बनाकर राजस्थान में जातीय समीकरण बिठाया गया है।
राजनीतिविज्ञों को सर्वाधिक आश्चर्य केंद्रीय राज्यमंत्री राज्यवर्द्धन सिंह को मंत्रिमंडल में स्थान नहीं मिलने से हुआ है। पूर्व ओलम्पियन की ख्याति राजनीति में आने से पहले ही रही है। उनका कार्यकाल भी करीब बेदाग ही रहा है। उन्हें फिलहाल मंत्रिमंडल में शामिल न करने का निर्णय संभवत: पार्टी की विशेष योजना का हिस्सा लग रहा है।
उधर बाड़मेर से पार्टी के पूर्व दिग्गज नेता जसवंत सिंह के पुत्र मानवेंद, को हराकर पहली बार सांसद निर्वाचित हुए कैलाश चौधरी को मंत्रि पद की शपथ लेते देख हैरानी हुई है। पूर्व विधायक चौधरी पूर्व विधायक रह चुके हैं। जानकारों के मुताबिक फिलहाल उनका मंत्री बनना जातीय समीकरण जहां जातीय समीकरण बिठाने की कोशश बताई जा रही है, वहीं उनका संघ पृष्ठभूमि का होना भी महत्वपूर्ण कारक बताया जा रहा है।
जानकारों के अनुसार राजस्थान में पार्टी को पूरी 25 सीटें मिली हैं, जाहिर है मंत्रि बनने की आस में जातीय आधार पर महत्व पाने की उम्मीद लगाये बैठे सांसदों को निराशा हुई है। सर्वाधिक निराशा पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के पुत्र दुष्यंत सिंह को भी होगी। वह लगातार चौथी बार चुनाव जीते हैं। पिछली बार भी उनके मंत्री बनने की उम्मीद की जा रही थी। इस बार भी उन्हें उम्मीद थी, लेकिन उन्हें इस बार भी निराशा हाथ लगी।
हाल ही में भाजपा से गठबंधन करके नागौर से राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ हनुमान बेनीवाल की भी उम्मीदें जाग गई थीं। इसके लिये उनका नाम मीडिया और सोशल मीडिया में खूब उछाला गया, लेकिन उन्हें भी निराशा ही हाथ लगी है।
जानकारों के अनुसार पार्टी ने कुछ राज्यों में विधानसभा चुनावों को मद्देनजर रखते हुए उन्हें राज्यों को तरजीह दी है। राजस्थान में फिलहाल चुनाव काफी दूर हैं, लिहाजा यहां के सांसदों के पल्ले कुछ खास नहीं पड़ है। हालांकि आने वाले समय में कुछ राज्यों में चुनाव के बाद मंत्रिमंडल में फेरबदल की संभावना के चलते उनकी उम्मीदें अब भी कायम हैं।