पांच राज्यों में मिली चुनावी हार के बाद एक बार फिर कांग्रेस नेतृत्व पर सवाल खड़े हो गए हैं। पार्टी के ख़राब प्रदर्शन को लेकर वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा कि ‘घर की कांग्रेस’ की जगह ‘सब की कांग्रेस’ होनी चाहिए। कांग्रेस नेता के इस बयान पर पूर्व पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी कुछ भी कहने से बचते नजर आए।
बयानबाज़ी की बजाय अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ें सिब्बल
कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा, ‘‘कपिल सिब्बल, डॉक्टर हर्षवर्धन (भाजपा नेता) ने आपसे नहीं कहा था कि चांदनी चौक से अलग हो जाइए। वह चुनाव लड़े और आपको पराजित किया। जो लोग कांग्रेस का नेतृत्व करना चाहते हैं वह मौजूदा नेतृत्व के खिलाफ रोजाना बोलने की बजाय पार्टी के अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने के लिए स्वतंत्र हैं।’’ वहीं संसद पहुंचे राहुल गांधी कपिल सिब्बल द्वारा दिए गए बयान पर कुछ भी कहने से बचते नजर आए।
बयान में क्या बोले सिब्बल
दरअसल, एक इंग्लिश न्यूज़ पेपर को दिए इंटरव्यू में कपिल सिब्बल ने गांधी परिवार पर हमला बोलते हुए कहा कि अब वक्त आ गया है कि ‘घर की कांग्रेस’ की जगह ‘सब की कांग्रेस’ हो। उन्होंने कहा कि इस बार के परिणामों ने मुझे आश्चर्यचकित नहीं किया क्योंकि मुझे इसका अंदाजा पहले से था। हम 2014 से लगातार नीचे की ओर जा रहे हैं। हमने राज्य दर राज्य खोया है। जहां हम सफल हुए वहां भी हम अपने कार्यकर्ता को एक साथ नहीं रख पाए।
उन्होंने कहा कि इस बीच कांग्रेस से कुछ प्रमुख लोगों का पलायन हुआ है। जिनमें नेतृत्व का भरोसा था वह कांग्रेस से दूर जा रहे थे। 2022 के विधानसभा चुनाव में भी नेतृत्व के करीबी लोगों ने उनका साथ छोड़ दिया। मैं आंकड़े देख रहा था। यह ध्यान रखना वाकई दिलचस्प है कि 2014 से अब तक लगभग 177 सांसद, विधायक के साथ-साथ 222 उम्मीदवार कांग्रेस छोड़ चुके हैं। हमने इतिहास में किसी अन्य राजनीतिक दल में इस तरह का पलायन नहीं देखा है।
समय-समय पर करना पड़ा अपमानजनक हार का सामना
कांग्रेस नेता ने कहा कि हमें समय-समय पर अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा है। जिन राज्यों में हम प्रासंगिक होने की उम्मीद करते हैं, वहां वोटों का प्रतिशत लगभग न के बराबर है। उत्तर प्रदेश में हमारे पास 2.33 फीसदी वोट शेयर है। यह मुझे आश्चर्य नहीं करता। हम मतदाताओं से जुड़ने में असमर्थ हैं।
सिब्बल ने कहा कि हम सामने से नेतृत्व करने में असमर्थ हैं, लोगों तक पहुंचने में असमर्थ हैं। हमारी पहुंच सार्वजनिक बहस का विषय है। जैसा कि गुलाम नबी आजाद ने कल कहा था कि एक नेता में पहुंच, जवाबदेही और स्वीकार्यता के गुण होने चाहिए। 2014 के बाद से, जवाबदेही का अभाव, घटती स्वीकार्यता और पहुंच बढ़ाने के लिए बहुत कम प्रयास हुए हैं। यही असली समस्या है। इसलिए परिणामों ने मुझे चौंकाया नहीं।