इंदौर : राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने आज संविधान निर्माता डॉ भीमराव अंबेडकर की 127वीं जयंती पर इंदौर जिले के महू स्थित उनकी जन्मस्थली पर बने स्मारक में उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किए। राष्ट्रपति ने बाबा साहेब डॉ अंबेडकर की आदमकद प्रतिमा पर माल्यार्पण किया और उनके चरणों में पुष्प अर्पित किये।
श्री कोविंद ने डॉ अंबेडकर स्मारक का भ्रमण कर वहां बाबा साहेब के जीवनवृत्त पर आधारित फोटो गैलरी का अवलोकन किया। इससे पूर्व अंबेडकर स्मारक संचालन समिति के अध्यक्ष भंते संघ शील और सचिव मोहनराव वाकोडे ने राष्ट्रपति श्री कोविंद, राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पुष्पगुच्छ भेंट कर उनका स्वागत किया। कोविंद ने कहा कि डॉ अंबेडकर स्वयं को हर स्तर पर भारतीय बताते थे। इसके पीछे उनकी अवधारणा अगड़ पिछड़ और धर्म की विभाजन रेखा को समाप्त करने की थी।
उन्होंने कहा कि इसी गर्व के साथ युवाओं में भी समरसता, अहिंसा और शांति की धारणा आने की जरुरत है। उन्होंने बिना किसी का नाम लिए कहा कि डॉ अंबेडकर ऐसी शिक्षा के पक्षधर थे, जो स्वयं का भलाबुरा समझने की क्षमता दे। उन्होंने कहा कि आज के समय में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं से गुजरते हुए अपने भलेबुरे की पहचान के लिए जागरुक रहने की जरुरत है।
राष्ट्रपति ने कहा कि अगर डॉ अंबेडकर भी भटक गए होते तो इतने विद्वान नहीं होते। उन्होंने डॉ अंबेडकर का संदर्भ देते हुए इस बात पर भी जोर दिया कि विरोध के भी कई संवैधानिक तरीके होते हैं। उन्होंने कहा कि नई पीढ़ को समझना होगा कि डॉ अंबेडकर ने देश के लिए क्या किया, उन्होंने आधुनिक भारत की नींव रखी,
संविधान की ही ताकत है, जिसकी बदौलत इस देश में पिछड़ वर्ग के लोग भी सर्वोच्च पदों पर पहुंच सकते हैं। अपने संबोधन के अंत में उन्होंने वहां मौजूद लाखों लोगों से अपील की कि वे नई दिल्ली आने पर राष्ट्रपति भवन जरुर आएं। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति भवन सिर्फ उनका नहीं, बल्कि हर भारतीय की धरोहर है।
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