सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज मदन बी लोकुर ने सोमवार को केंद्र सरकार पर बड़ा आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि जनता की राय पर प्रतिक्रिया के रूप में सरकार बोलने की आजादी पर अंकुश लगाने के लिए राजद्रोह कानून का सहारा ले रही है।
रिटायर्ड जज लोकुर ने ‘बोलने की आजादी और न्यायपालिका’ विषय पर एक वेबिनार को संबोधित करते हुए कहा कि बोलने की आजादी को कुचलने के लिए सरकार लोगों पर फर्जी खबरें फैलाने के आरोप लगाने का तरीका भी अपना रही है। उन्होंने कोरोना वायरस के मामले और इससे संबंधित वेंटिलेटर की कमी जैसे मुद्दों की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों पर फर्जी खबर के प्रावधानों के तहत आरोप लगाये जा रहे हैं।
न्यायमूर्ति लोकुर ने कहा, ‘‘सरकार बोलने की आजादी पर अंकुश लगाने के लिए राजद्रोह कानून का सहारा ले रही है। अचानक ही ऐसे मामलों की संख्या बढ़ गयी है जिसमें लोगों पर राजद्रोह के आरोप लगाए गए हैं। कुछ भी बोलने वाले एक आम नागरिक पर राजद्रोह का आरोप लगाया जा रहा है। इस साल अब तक राजद्रोह के 70 मामले देखे जा चुके हैं।’’
इस वेबिनार का आयोजन कैंपेन फॉर ज्यूडिशियल एकाउन्टेबिलिटी एंड रिफार्म्स और स्वराज अभियान ने किया था। अधिवक्ता प्रशांत भूषण के खिलाफ कोर्ट की अवमानना के मामले पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि उनके बयानों को गलत पढ़ा गया। उन्होंने डा. कलीफ खान के मामले का भी उदाहरण दिया और कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत आरोप लगाते समय उनके भाषण और नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ उनके बयानों को गलत पढ़ा गया।
वरिष्ठ पत्रकार एन राम ने कहा कि प्रशांत भूषण के मामले में दी गयी सजा बेतुकी है और सुप्रीम कोर्ट के निष्कर्षो का कोई ठोस आधार नहीं है। राम ने कहा, ‘‘मेरे मन में न्यायपालिका के प्रति बहुत सम्मान है। यह न्यायपालिका ही है जिसने संविधान में प्रेस की आजादी को पढ़ा।’’
सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा राय ने कहा कि भूषण की स्थिति काफी व्यापक होने की वजह से लोगों का सशक्तीकरण हुआ है और इस मामले ने लोगों को प्रेरित किया है। इस बीच, प्रशांत भूषण ने न्यायपालिका के प्रति अपमानजनक दो ट्वीट को लेकर अवमानना का दोषी ठहराये जाने के बाद सजा के रूप में एक रुपए का जुर्माना सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री में जमा कराया है।