विवादित शराब कारोबारी विजय माल्या प्रत्यर्पण से जुड़े अपने मुकदमे की सुनवाई के सिलसिले में आज फिर ब्रिटेन की एक अदालत में पेश हुए। माल्या (62) करीब 9,000 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी और धनशोधन के आरोप में भारत में वांछित हैं। पिछले साल अप्रैल में स्कॉटलैंड यार्ड की ओर से प्रत्यर्पण वॉरंट पर अपनी गिरफ्तारी के बाद से वह 650,000 पाउंड की जमानत पर हैं।
माल्या ने स्थानीय वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट की अदालत के बाहर पत्रकारों को बताया, ”अदालत में एक और दिन।” वेस्टमिंस्टर अदालत की मुख्य मजिस्ट्रेट एम्मा अर्बथनॉट भारत सरकार की ओर से दलीलें पेश कर रही क्राउन अभियोजन सेवा ( सीपीएस ) से मांगी गई कुछ अतिरिक्त सामग्री पर विचार करने वाली हैं।
उन्होंने इस मामले में फैसले की समयसीमा भी तय कर दी है। फैसला अगले महीने आने की संभावना है। बीते 16 मार्च को मामले की आखिरी सुनवाई में जज ने कहा था कि यह पूरी तरह साफ है कि माल्या के स्वामित्व वाली किंगफिशर एयरलाइंस को कर्ज देने वाले भारतीय बैंकों की ओर से नियम तोड़े गए थे।
उन्होंने कहा , ”इस बात के साफ संकेत हैं कि बैंक ( कुछ कर्ज मंजूर करने के मामले में ) अपने ही दिशानिर्देशों के खिलाफ गए।” जज ने बैंक अधिकारियों को ”आमंत्रित” किया कि वे इस मामले में शामिल कुछ बैंक अधिकारियों के खिलाफ केस को स्पष्ट करें क्योंकि वह माल्या के खिलाफ ”साजिश” के आरोपों से जुड़े हैं। आज की सुनवाई ऐसे समय में हो रही है जब प्रत्यर्पण पर वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट की अदालत के एक पिछले फैसले के खिलाफ भारत सरकार की ओर से उच्च न्यायालय में की गई अपील नकार दी गई थी।
साल 2000 में दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान हैंसी क्रोन्ये से जुड़े मैच फिक्सिंग मामले में अहम आरोपी और भारत में वांछित संजीव कुमार चावला को दिल्ली के तिहाड़ जेल की गंभीर स्थितियों के मुद्दे पर मानवाधिकारों के आधार पर पिछले साल अक्टूबर में आरोपमुक्त कर दिया गया था।
चावला को प्रत्यर्पित किए जाने पर तिहाड़ जेल में ही रखने की तैयारी थी। माल्या की बचाव टीम ने कई विशेषज्ञ गवाहों से गवाही दिलवाकर दावा किया कि उनकी कोई गलत मंशा नहीं है और भारत में उन पर निष्पक्ष तरीके से मुकदमा चलाने की संभावना नहीं है। यदि जज भारत सरकार के पक्ष में फैसला देती हैं तो ब्रिटेन के विदेश मंत्री के पास माल्या के प्रत्यर्पण आदेश पर दस्तखत के लिए दो महीने का वक्त होगा। बहरहाल, दोनों पक्षों के पास मजिस्ट्रेट की अदालत के फैसले के खिलाफ ब्रिटेन की ऊंची अदालतों में अपील करने का हक होगा।
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