देश और दुनिया की तमाम खबरों के लिए हमारा YouTube Channel 'PUNJAB KESARI' को अभी subscribe करें। आप हमें FACEBOOK, INSTAGRAM और TWITTER पर भी फॉलो कर सकते हैं।
गौरतलब हो की पाटकर को यह सजा दिल्ली के उपराज्यपाल वी के सक्सेना द्वारा 23 साल पहले उनके खिलाफ दायर मानहानि के मामले में दी गई थी। उस समय सक्सेना गुजरात के एक गैर सरकारी संगठन के प्रमुख थे।
वीके सक्सेना के अधिवक्ता गजिंदर कुमार ने बताया कि पाटकर की अपील पर मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट राघव शर्मा ने सजा निलंबित कर दी और दूसरे पक्ष (उपराज्यपाल) को नोटिस जारी किया। उन्होंने बताया कि अदालत ने पाटकर को 25,000 रुपये की जमानत और इतनी ही राशि के मुचलके पर जमानत दे दी।
उपराज्यपाल की ओर से सुनवाई के लिए पेश हुए वकील गजिंदर कुमार ने नोटिस प्राप्त किया। उन्होंने कहा कि मामले की अगली सुनवाई चार सितंबर को है और इससे पहले जवाब दाखिल करना होगा। अदालत ने एक जुलाई को पाटकर को जेल की सजा सुनाई थी। अदालत ने 24 मई को पाटकर को दोषी करार देते हुए कहा था कि सक्सेना को "कायर" कहना और उन पर "हवाला" लेन-देन में शामिल होने का आरोप लगाना न सिर्फ अपने आप में मानहानिकारक है, बल्कि उनके बारे में नकारात्मक धारणा को भी उकसाता है।
पाटकर और सक्सेना के बीच वर्ष 2000 से कानूनी लड़ाई जारी है, जब पाटकर ने उनके और नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) के खिलाफ विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए सक्सेना के खिलाफ मुकदमा दायर किया था।सक्सेना ने 2001 में पाटकर के खिलाफ एक टेलीविजन चैनल पर उनके खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने और मानहानिकारक प्रेस विज्ञप्ति जारी करने के लिए दो मामले दायर किए थे। वह उस वक्त अहमदाबाद स्थित "काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज" नामक एक गैर सरकारी संगठन के प्रमुख थे।