छह साल पहले असम में रहने वाले अवैध विदेशियों की पहचान करके 1951 के राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) को अपडेट करने के लिए बड़े पैमाने पर प्रक्रिया शुरू की गई और तब से लाखों लोग चिंता में रहते रहे हैं। सरकार ने 25 मार्च, 1971 को भारत की नागरिकता पर विचार करने के लिए कटऑफ की तारीख निर्धारित की, जिसका तात्पर्य है कि जो लोग 24 मार्च, 1971 की मध्यरात्रि से पहले आए, वे भारतीय नागरिक हैं, जबकि उसके बाद आए लोगों का पता लगाया जाना चाहिए और उन्हें उनके देश भेजा जाना चाहिए।
पिछले साल, असम सरकार ने एनआरसी के मसौदे को प्रकाशित किया था जिसमें से 40,07,707 लोगों के नामों को उनकी भारतीय नागरिकता साबित करने के लिए जमा किए गए दस्तावेजों में ‘कुछ विसंगतियों’ के कारण बाहर रखा गया था। अंतिम एनआरसी में अपने नामों को शामिल करने के लिए इनमें से 36 लाख से अधिक लोगों ने नए सिरे से आवेदन किया।
सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी में काम करने वाले एनआरसी अधिकारियों ने भी बाहर रखे गए लोगों को उनकी भारतीय नागरिकता साबित करने के लिए एक बार फिर से प्रयास करने के लिए दावे और आपत्तियों की प्रक्रिया की व्यवस्था की। उन लोगों के लिए जो इसे अंतिम सूची में शामिल करने में विफल रहते हैं, लंबी कानूनी लड़ाई का इंतजार है। सूची से बाहर रखे गए लोगों के पास राज्य भर में फॉरनर ट्रिब्यूनल के माध्यम से अपनी भारतीय नागरिकता साबित करने के लिए 120 दिन होंगे।
शनिवार को अंतिम सूची के प्रकाशन के पहले, पश्चिमी असम के गोलपारा जिले के खुटामारी गांव में तनाव का माहौल रहा। एनआरसी के ड्राफ्ट में गांव के 100 से अधिक लोगों ने अपना नाम नहीं पाया था। उनमें से अधिकांश ने अपनी भारतीय नागरिकता साबित करने के लिए नए आवेदन दायर किए।
असम की राजधानी गुवाहाटी के पश्चिम में लगभग 170 किलोमीटर की दूरी पर स्थित, खुटामारी गांव है, जहां विभिन्न धर्मो के लोग रहते हैं जिनमें मुस्लिम, बोडो, राबास और कोच राजबोंगशीस शामिल हैं। हालांकि, मुसलमान पीढ़ियों से गांव में रह रहे हैं, उनमें से कुछ एनआरसी के ड्राफ्ट में अपना नाम खोजने में असफल रहे।
गांव के निवासी 55 वर्षीय साहब अली ने शुक्रवार को कहा, “मैं यहां पैदा हुआ था और यही रहा हूं। मेरे पास भारतीय नागरिकता साबित करने के लिए मेरे सभी स्कूल प्रमाण पत्र और सब कुछ है। हालांकि, मुझे 1997 में चुनाव अधिकारियों द्वारा ‘डी’ मतदाता के रूप में वर्गीकृत किया गया था। मुझे पहले मामले को फॉरनर्स ट्रिब्यूनल ले जाना पड़ा और फिर यहां सत्र न्यायालय में। 2012 में, अदालत ने फैसला सुनाया कि मैं एक वास्तविक भारतीय नागरिक हूं। फिर भी मेरा नाम एनआरसी ड्राफ्ट में शामिल नहीं किया गया।”
साहब की तरह, एनआरसी ड्राफ्ट में उनकी मां का नाम भी शामिल नहीं किया गया, जबिक उनकी मां का नाम 1966 की मतदाता सूची में था। एनआरसी ड्राफ्ट से 26 वर्षीय अकबर हुसैन और उनके चार भाई-बहनों के नाम भी गायब थे। अकबर ने फाइनल एनआरसी सूची के पब्लिश होने की पूर्वसंध्या पर कहा, “हमारे पिता का नाम एनआरसी में था। हमने अपने पिता से संबंधित लेगसी डॉक्युमेंट सौंपी, लेकिन एनआरसी के ड्राफ्ट में हमारे नाम शामिल नहीं हैं।”
उन्होंने कहा कि उन्होंने ‘वैध दस्तावेज’ दिए, लेकिन उन्हें खारिज कर दिया गया। हुसैन ने कहा, “हम वास्तविक भारतीय नागरिक हैं। वे हमें विदेशी कैसे बता सकते हैं? हमारे गांव में ऐसे 100 से अधिक मामले हैं। वे सभी वास्तविक भारतीय नागरिक हैं।”