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पूरे देश में खुलें ‘मदर्स मिल्क बैंक’, बचेगी लाखों बच्ची की जान

नवजात बच्चों के लिये ‘जीवन अमृत’ माने जाने वाले मां के दूध के अभाव में शिशुओं की मौतों को रोकने के लिये पूरे देश में ‘मदर्स मिल्क बैंक’ खोलने की मांग की गयी है।

नवजात बच्चों के लिये ‘जीवन अमृत’ माने जाने वाले मां के दूध के अभाव में शिशुओं की मौतों को रोकने के लिये पूरे देश में ‘मदर्स मिल्क बैंक’ खोलने की मांग की गयी है। मदर्स मिल्क बैंक देश में शिशु मृत्यु दर घटाने के लिहाज से बेहद कारगर उपाय हो सकता है और इससे हर साल एक लाख 60 हजार नवजात बच्चों को बचाया जा सकेगा। देश भर में ‘मदर्स मिल्क बैंक’ की स्थापना की मांग करने वाले स्तनपान संवद्र्धन समिति के अध्यक्ष डॉक्टर आर. एन. सिंह ने बताया कि यूनिसेफ और विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार मां का दूध न मिल पाने के कारण हिन्दुस्तान में हर साल लगभग एक लाख 60 हजार नवजात जान गंवा देते हैं। 
उन्होंने कहा कि इन आंकड़ों से साफ है कि इस सिलसिले को रोकने का एक ही रास्ता है कि वाराणसी की तर्ज पर पूरे देश में जगह—जगह ‘मदर्स मिल्क बैंक’ स्थापित किये जाएं। गुरुवार एक अगस्त को शुरू हो रहे ‘वर्ल्ड ब्रेस्ट फीडिंग वीक’ से ऐन पहले उनकी मांग है कि सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठाये। सिंह ने बताया कि कई बार ऐसी स्थिति पेश आती है कि शिशु को अपनी मां का दूध नहीं मिल पाता। खासकर मां के गंभीर रूप से बीमार हो जाने, दूध उत्पन्न न हो पाने या बच्चे के जन्म के बाद मां की मृत्यु हो जाने पर नवजात बच्चे मां के दूध से महरूम रह जाते हैं। 
उन्होंने बताया कि जन्म के फौरन बाद मां का दूध नहीं मिल पाने के कारण डायरिया, निमोनिया और कुपोषण आदि अनेक कारणों से हर साल हजारों बच्चों की मृत्यु हो जाती है। मां का दूध शिशु के शारीरिक और मानसिक विकास को सही गति देता है। मां का दूध शिशु का प्रथम टीकाकरण भी है। मां के दूध पर पोषित होने वाले शिशु बहुत कम बीमार पड़ते हैं। 

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पूर्वांचल में हर साल सैकड़ों की जान लेने वाले इंसेफेलाइटिस के उन्मूलन की दिशा में काम कर चुके डॉक्टर सिंह का सुझाव है कि देश में शिशुओं की सेहत और जिंदगी की सलामती के लिये जमीनी स्तर पर काम करना होगा, लिहाजा हर ब्लॉक और जिले स्तर पर मदर्स मिल्क बैंक खोले जाएं। इससे नवजात शिशु मृत्यु दर में उल्लेखनीय कमी आयेगी। खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार समेत कई प्रदेशों में यह दर काफी अधिक है। 
उन्होंने कहा कि शिशु मृत्यु दर किसी भी देश/प्रदेश का सबसे बुनियादी स्वास्थ्य सूचकांक माना जाता है। इसी से देश की स्वास्थ्य व्यवस्था की स्थिति का आकलन किया जाता है। जाहिर है स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी आगे रहने के लिये नवजात मृत्यु दर में उल्लेखनीय कमी लानी होगी। सिंह ने कहा कि मदर्स मिल्क बैंक कोई अजूबा नहीं हैं। महाराष्ट्र और राजस्थान में ऐसे बैंक वर्षों से हैं और शिशुओं की असरदार तरीके से हिफाजत कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश के वाराणसी में भी ऐसा बैंक बन गया है। ऐसे बैंक पूरे देश में खोले जाने चाहिये। 

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