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कृषि कानून पर 33वें दिन आंदोलन जारी, किसान नेता बोले- सुधार को लेकर खुद गुमराह है सरकार

जोगिंदर सिंह पंजाब का संगठन भारतीय किसान यूनियन (एकता-उग्राहां) के प्रेसीडेंट हैं। उन्होंने कहा कि सरकार कृषि सुधार को लेकर खुद गुमराह है क्योंकि अमेरिका में ये मॉडल विफल रहा है उसे सरकार भारत में आजमाने जा रही है।

केंद्र सरकार द्वारा लागू नये कृषि कानूनों को लेकर दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का आंदोलन सोमवार को 33वें दिन जारी है। कृषि कानून के विरोध में लामबंद हुए किसानों को अब तक सरकार गुमराह बता रही थी, लेकिन अब एक किसान नेता का कहना है कि सरकार खुद कृषि सुधार को लेकर गुमराह है। किसान नेता जोगिंदर सिंह कहते हैं कि कृषि सुधार का जो मॉडल विदेशों में फेल हो चुका है उसे भारत में लागू कर सरकार किसानों की तकदीर बदलना चाहती है।
जोगिंदर सिंह पंजाब का संगठन भारतीय किसान यूनियन (एकता-उग्राहां) के प्रेसीडेंट हैं। उन्होंने कहा कि सरकार कृषि सुधार को लेकर खुद गुमराह है क्योंकि अमेरिका में ये मॉडल विफल रहा है उसे सरकार भारत में आजमाने जा रही है। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने विपक्ष पर किसानों को गुमराह करने का आरोप लगाते हुए कहा कि 1991 में जब (तत्कालीन प्रधानमंत्री) नरसिंह राव ने आर्थिक सुधार का आगाज किया तो उसके सकारात्मक परिणाम आने में चार-पांच साल लग गए।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा लागू कृषि सुधार के अच्छे नतीजे देखने के लिए अगर हम चार-पांच साल इंतजार नहीं कर सकते तो कम से कम दो साल तो इंतजार कर ही सकते हैं। रक्षामंत्री के इस बयान को लेकर पूछे गए सवाल पर जोगिंदर सिंह ने कहा कि मंडी कानून बिहार में 2006 में ही समाप्त कर दिया गया था और आज बिहार के किसानों का क्या हाल है, यह सबको मालूम है।
उन्होंने कहा, इसलिए नये कानून के नतीजे देखने के लिए ज्यादा इंतजार करने की जरूरत नहीं है बल्कि हमारे पास उदाहरण पहले से ही मौजूद हैं। बता दें कि बिहार में 2006 में प्रदेश सरकार ने एपीएमसी काननू को निरस्त कर दिया था। आंदोलनकारी किसान संगठनों के नेता कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून 2020, कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार कानून 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून 2020 को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं।
संसद के मानसून सत्र में पेश तीन अहम विधेयकों के दोनों सदनों में पारित होने के बाद इन्हें सितंबर में लागू किया गया। हालांकि इससे पहले अध्यादेश के आध्यम से ये कानून पांच जून से ही लागू हो गए थे। इन तीनों कानूनों को लेकर सरकार और किसान संगठनों के बीच जारी गतिरोध दूर करने और किसान आंदोलन को समाप्त करने के लिए 29 नवंबर को अगले दौर की वार्ता प्रस्तावित है। किसान संगठनों की ओर से इस वार्ता के लिए जो एजेंडा सरकार के पास भेजा गया है उसमें शामिल चार मुद्दों में तीनों केंद्रीय कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिए अपनाए जाने वाली क्रियाविधि पहले नंबर पर है।
इसके अलावा, सभी किसानों और कृषि वस्तुओं के लिए राष्ट्रीय किसान आयोग द्वारा सुझाए लाभदायक एमएसएपी पर खरीद की कानूनी गारंटी देने की प्रक्रिया और प्रावधान पर वे सरकार से बातचीत करना चाहते हैं। अगले दौर की वार्ता के लिए प्रस्तावित अन्य दो मुद्दों में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए आयोग अध्यादेश, 2020 में ऐसे संशोधन जो अध्यादेश के दंड प्रावधानों से किसानों को बाहर करने के लिए जरूरी हैं और किसानों के हितों की रक्षा के लिए विद्युत संशोधन विधेयक 2020 के मसौदे में जरूरी बदलाव शामिल हैं।

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