आज ज्ञानवापी मामले पर वाराणसी कोर्ट की तरफ से मुस्लिम पक्ष को बड़ा झटका लगा है कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज कर दिया है। इसके अलावा अदालत ने हिंदू पक्ष की याचिका को सुनवाई के योग्य माना। जहां हिंदू पक्ष की तरफ से ज्ञानवापी परिसर में पूजा करने के अधिकार देने और मुस्लिम पक्ष का प्रवेश रोकने की मांग वाली याचिका कोर्ट ने स्वीकार कर ली है।
15 अक्टूबर को ही अदालत में दोनों पक्षों की दलीलें हुई थी पूरी
इस मामले में बीते 15 अक्टूबर को ही अदालत में दोनों पक्षों की दलीलें पूरी हो गई थीं। तभी से आदेश में पत्रावली लंबित थी। इस प्रकरण में वादिनी किरण सिंह की तरफ से मुस्लिमों का प्रवेश वर्जित करने व ज्ञानवापी परिसर हिंदुओं को सौंपने और शिवलिंग की पूजा पाठ राग भोग की अनुमति मांगी गई थी। जिसके बाद अब इस मामले को कोर्ट ने सुनवाई योग्य माना है।
पूजा वाले प्रार्थना पत्र पर अगली सुनवाई दो दिसंबर को
वहीं अदालत के द्वारा अगली सुनवाई की तारीख दो दिसंबर निर्धारित की गई है। अगली तारीख पर तत्काल पूजा वाले प्रार्थना पत्र पर सुनवाई होगी। बता दें कि गुरुवार को कोर्ट के आदेश के अनुसार अदालत परिसर में जबरदस्त सुरक्षा व्यवस्था रही। जिसके बाद विश्व वैदिक सनातन संघ ने कोर्ट के इस आदेश का स्वागत किया है।
‘ज्ञानवापी का गुंबद छोड़कर सब कुछ मंदिर का’
बता दें कि वादिनी किरन सिंह के अधिवक्ताओं ने अपनी दलील में कहा था कि, वाद सुनवाई योग्य है या नहीं, इस मुद्दे पर अंजुमन इंतजामिया की तरफ से जो आपत्ति उठाई गई है, वह साक्ष्य व ट्रायल का विषय है। ज्ञानवापी का गुंबद छोड़कर सब कुछ मंदिर का है जब ट्रायल होगा तभी पता चलेगा कि वह मस्जिद है या मंदिर।
दीन मोहम्मद के फैसले के जिक्र पर कहा कि कोई हिंदू पक्षकार उस मुकदमे में नहीं था इसलिए हिंदू पक्ष पर लागू नहीं होता है। यह भी दलील दी कि विशेष धर्म स्थल विधेयक 1991 इस वाद में प्रभावी नहीं है। स्ट्रक्चर का पता नहीं कि मंदिर है या मस्जिद। जिसके ट्रायल का अधिकार सिविल कोर्ट को है।
कहा कि यह ऐतिहासिक तथ्य है कि औरंगजेब ने मंदिर तोड़ने और मस्जिद बनवाने का आदेश दिया था। वक्फ एक्ट हिन्दू पक्ष पर लागू नहीं होता है। ऐसे में यह वाद सुनवाई योग्य है और अन्जुमन की तरफ से पोषणीयता के बिंदु पर दिया गया आवेदन खारिज होने योग्य है।
हिंदू पक्ष के अधिवक्ताओं की दलील
हिंदू पक्ष के अधिवक्ताओं ने दलीलें रखी थी कि राइट टू प्रॉपर्टी के तहत देवता को अपनी प्रॉपर्टी पाने का मौलिक अधिकार है। ऐसे में नाबालिग होने के कारण वाद मित्र के जरिये यह वाद दाखिल किया गया है। भगवान की प्रॉपर्टी है, तब माइनर मानते हुए वाद मित्र के जरिये क्लेम किया जा सकता है। स्वीकृति से मालिकाना हक हासिल नहीं होता है। यह बताना पड़ेगा कि संपत्ति कहां से और कैसे मिली। अदालत में वाद के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट की 6 रूलिंग और संविधान का हवाला भी दिया गया।
मुस्लिम पक्ष की दलील
वहीं मुस्लिम पक्ष यानि अंजुमन इंतजामिया मसाजिद की तरफ से मुमताज अहमद, तौहीद खान, रईस अहमद, मिराजुद्दीन खान और एखलाक खान ने कोर्ट में प्रतिउत्तर में सवाल उठाते हुए कहा था कि एक तरफ कहा जा रहा है कि वाद देवता की तरफ से दाखिल है। वहीं दूसरी तरफ पब्लिक से जुड़े लोग भी इस वाद में शामिल हैं।
यह वाद किस बात पर आधारित है, इसका कोई पेपर दाखिल नहीं किया गया है और कोई सबूत नहीं है। कहानी से कोर्ट नहीं चलती, कहानी और इतिहास में फर्क है। जो इतिहास है वही लिखा जाएगा। साथ ही कानूनी नजीरे दाखिल कर कहा था कि वाद सुनवाई योग्य नहीं है और इसे खारिज कर दिया जाए।