मालाड पश्चिम मालवाणी क्षेत्र में भूमि घोटाला उस समय हुआ जब यूपीए शासन के दौरान नारायण राणे महाराष्ट्र के राजस्व मंत्री थे। उसी दौरान उन्होंने एक भूमाफिया को फायदा पहुंचाने के लिए अपने पद का दुरुपयोग करते हुए एकतरफा आदेश दिया। राणे के दिए गये आदेश के बाद भूमाफिया वॉल्टर रेमंड पटेल के वारिस के फर्जी दस्तावेज को भी सही ठहराया गया।
जिसके कारण सरकार की चार एकड़ की भूखंड उसे मिल गयी जिसकी कीमत 800 करोड़ रुपये बताई जाती है। इतना ही नहीं, इसी दस्तावेज और भूखंड के आधार पर भूमाफिया ने अपने साथी रिकी रॉनी बिल्डर के साथ मिलकर बैंकों से 91 करोड़ रुपये का लोन भी लिया है जिसकी एनओसी खुद जिला अधिकारी ने दी।
मामला मुंबई के मालाड पश्चिम मलवाणी क्षेत्र का है। जहां सरकार की चार एकड़ की भूखंड बोरीवली के संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान (नेशनल पार्क) क्षेत्र में अतिक्रमण करने वाले लोगों को स्थानांतरित करने का आदेश मुंबई उच्च न्यायालय ने वर्ष 2000 में दिया था लेकिन जिला अधिकारी ने इस भूखंड पर सांताक्रूज स्थित गजधर बांध के नालों को चौड़ा करने की परियोजना के दौरान प्रभावित नागरिकों का पुनर्वास करने का आदेश म्हाडा को दिया था। क्योंकि यह भूखंड गरीबों के पुनर्वास के लिए आरक्षित था। लेकिन इस भूखंड पर कब्जा करने के लिए वॉल्टर रेमंड पटेल के वारिस ने अपने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर 85 साल का कब्जा होने और खेती करने का दावा किया था।
किंतु जिला अधिकारी द्वारा कड़ी कार्रवाई के चलते भूमाफिया वॉल्टर रेमंड पटेल के वारिस को नारायण राणे की मदद लेनी पड़ी। जिसके बाद राणे ने जिला अधिकारी, म्हाडा प्रशासन की दलील सुनने के बावजूद भूमाफिया को भूखंड देने के लिए अपना अधिकार होते हुए अधिकार का दुरुपयोग करते हुए एकतरफा आदेश जारी कर दिया जिसके चलते यह भूखंड उसके पक्ष में चला गया।
जिसके बाद सरकार की 800 करोड़ रुपये की भूखंड का फायदा वॉल्टर रेमंड पटेल के वारिस को हुआ। ऐसे में अब सवाल यह उठ रहे हैं कि एकतरफा आदेश देने के पीछे नारायण राणे का क्या कारण है? राणे ने इस भूखंड को देने के लिए सरकारी अधिकारियों की तमाम दलील सुनी और फर्जी दस्तावेज होने का खुलासा होने के बावजूद राणे ने अपना पद को दाव पर क्यों लगाया? इस बात की खुलासा होना जरूरी है।