छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के बैकफुट में जाने की वजह नोटबंदी को मानी जा रही है। राज्य पुलिस ने दावा कर दिया कि नोटबंदी के चलते नक्सली कमजोर हो गए। उन्होंने बड़ी तादाद में अपने राशि बैंकों में जमा कराई है। एक मुठभेड़़ में बरामद हुई नक्सलियों का खाता देखकर कुछ इसी तरह के दावे किए जा रहे हैं। इन आंकड़ों में नोटबंदी के दौरान दो लाख रूपए जमा करने का जिक्र किया गया है।
राज्य पुलिस के आला अफसरों का मानना है कि सभी एरिया कमेटी से लेकर एलओएस तक सदस्यों को नोट जमा कराने की जवाबदारी दी गई थी। बस्तर के विभिन्न हिस्सों में अपने सुरक्षित ठिकानों में रखे एक हजार और पांच सौ रूपए के पुराने नोट नक्सलियों ने बदलवाए हैं। हालांकि कुछ मामलों में नोटबंदी के लिउ पहुंचे नक्सली मददगारों को पुलिस ने पकडऩे में सफलता भी हासिल की है।
आईजी ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि नक्सलियों ने अपने प्रभाव क्षेत्र वाले ईलाकों में संबंधित ठेकेदारों, व्यवसायियों और अन्य लोगों के जरिए नोटों को बैंकों में जमा कर इसे बदलवाया है। पुलिस की मानें तो बस्तर के नेलनार ईलाके में मुठभेड़ के बाद नक्सलियों के बही खाते बरामद हुए हैं।
इन बही खातों के विवरण से इसका खुलाया हो रहा है। इधर बस्तर में सुरक्षित माने जाने वाले क्षेत्रों में नक्सलियों ने अपना प्रभुत्व कायम रखा है। वहीं वनोपजों से ही बड़ी तादाद में बस्तर में कारोबार होता है। वनोपज व्यापारियों और बड़े ठेकेदारों समेत अन्य माध्यमों से नक्सली लगातार वसूली करते रहे हैं। यही वजह है कि माओवादियों को बस्तर में एक हजार करोड़ की आय होती है।
वसूली के जरिए माओवादी बड़ी रकम एकत्र कर इसे हथियारों की खरीदी में इस्तेमाल करते रहे हैं। वहीं माओवादी संगठनों के सदस्यों को भी जयरत के मुताबिक राशि मुहैया कराई जाती रही है। नक्सली अपने बहीखातों में विभिन्न दलों का पूरा विवरण भी रखते हैं। अपनी गतिविधियां संचालित करने नसली अंदरूनी क्षेत्रों के लोगों की भी मदद लेते हैं।