केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बृहस्पतिवार को कहा कि इस साल दिल्ली और इसके पड़ोसी राज्य पराली को खेतों में ही सड़ाने-गलाने के लिये पूसा कृषि संस्थान द्वारा विकसित एक नयी प्रौद्योगिकी का उपयोग करेंगे।
हर साल पराली जलाये जाने से दिल्ली और इसके पड़ोसी राज्यों– हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान– में प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है।
जावड़ेकर ने दिल्ली में इन राज्यों के पर्यावरण मंत्रियों के साथ एक डिजिटल बैठक करने के बाद संवाददाताओं को संबोधित करते हुए यह बात कही।
दिल्ली और इसके चार पड़ोसी राज्यों के साथ बैठक का आयोजन इन राज्यों की तैयारियों का जायजा लेने तथा सर्दियों के मौसम में पराली जलाये जाने से पहले एहतियाती उपाय किये जाने के लिये किया गया था।
उन्होंने कहा कि ‘‘पूसा माइक्रोबियल डिकम्पोजर कैप्सूल’’का परीक्षण दिल्ली-एनसीआर में जारी है।
उन्होंने बताया कि इस प्रौद्योगिकी का इस साल 10,000 हेक्टेयर क्षेत्र में उपयोग किया जाएगा, जबकि दिल्ली 800 हेक्टेयर में इसका उपयोग कर रहा, जैसा कि बैठक में शामिल हुए राज्यों के पर्यावरण मंत्रियों द्वारा जानकारी दी गई।
जावड़ेकर ने कहा कि पिछले तीन साल में पराली जलाया जाना कम हुआ है लेकिन इस मुद्दे से निपटने के लिये और अधिक कार्य करने की जरूरत है।
बैठक में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, दिल्ली विकास प्राधिकरण, आदि भी शामिल हुए।
राज्यों के साथ एक घंटे से अधिक समय तक चली बैठक की अध्यक्षता करने के बाद जावड़ेकर ने कहा कि सभी पांचों राज्यों ने अपनी कार्य योजना का विस्तृत विवरण दिया है और दिल्ली को अपने 13 प्रदूषण हॉटस्पॉट पर ध्यान केंद्रित करने तथा धूल से बचने के लिये अधूरे सड़क निर्माण कार्यो को पूरा करने को कहा गया है।
उन्होने कहा कि ईस्टर्न एंड वेस्टर्न पेरीफेरल एक्सप्रेसवे ने दिल्ली में वाहनों के प्रदूषण को कम करने में बड़ी मदद की है। करीब 60,000 से अधिक वाहनों को दिल्ली से बाहर के रास्ते मोड़ दिया जा रहा है, जो पहले दिल्ली के अंदर से होकर गुजरते थे।
उन्होंने कहा कि पराली जलाये जाने के अलावा भी कई कारण हैं जो राष्ट्रीय राजधानी में प्रदूषण बढ़ाते हैं, इनमें कूड़ा जलाना, धूल और कच्ची सड़कें शामिल हैं।
जावड़ेकर ने कहा, ‘‘केंद्र सरकार ने फसल अवशेषों को नष्ट करने के लिये मशीनें दी हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) और पूसा की अपघटक प्रौद्योगिकी इस साल राज्यों में परीक्षण आधार पर आजमाई जाएगी। ’’
उन्होंने कहा, ‘‘हम बायो सीएनजी और बायो ऊर्जा के उपयोग को भी बढ़ावा दे रहे हैं। बीएस- 6 मानकों वाले वाहनों को पेश किया जा रहा है। ’’
आईएआरआई ने पूसा अपघटक को विकसित किया है, जिसमें चार गोलियां (कैप्सूल) हैं। ये कवक से बनी हैं जो धान की पराली को सामान्य समय की तुलना में तेजी से सड़ाने गलाने में मदद करेगी। इसके लिये, खेतों में इसके घोल का छिड़काव करना होगा।
आईएआरआई, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) द्वारा प्रशासित है।
उल्लेखनीय है कि किसान फसल कटाई के बाद खेतों में पराली को जल्दी साफ करने के लिये और गेहूं एवं आलू की खेती से पहले खेत में आग लगा देते हैं। यह दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण बढ़ने का एक मुख्य कारण है।