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नो डिटेंशन की नीति से हो रही थी शिक्षा नष्ट – जावड़ेकर

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा है कि बच्चे को कक्षा में फेल नहीं करने की नीति (नो डिटेंशन पॉलिसी) शिक्षा को संभवतया

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा है कि बच्चे को कक्षा में फेल नहीं करने की नीति (नो डिटेंशन पॉलिसी) शिक्षा को संभवतया नष्ट कर सकती है। इसलिए सरकार सीखने के परिणाम पर आधारित माडयूलों (आउटकम बेस्ट लर्निंग मॉडयूल) को लागू करने की योजना की दिशा में काम कर रही है।

उन्होंने उच्च शिक्षा दे रहे लघु आकार के विश्वविद्यालयों के लिए भी भविष्य में एक अलग रैंकिग प्रक्रिया की आवश्यकता पर भी बल दिया। वह गोवा विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह के अवसर पर बोल रहे थे। इस अवसर पर गोवा की राज्यपाल एवं विश्वविद्यालय की कुलाधिपति मृदुला सिन्हा भी उपस्थित थीं

जावड़ेकर ने कहा कि मोदी सरकार देश की शिक्षा व्यवस्था को एक दिशा देने की कोशिश कर रही है। शिक्षा को केवल ‘‘इनपुट आधारित’’ नहीं अपितु इसे ‘‘परिणाम आधारित’’ होना चाहिये।

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उन्होंने कहा, ‘‘शैक्षिक संस्थानों के लिए केवल अवसंरचना बनाना ही महत्वपूर्ण नहीं हैँ..आवश्यक यह है कि परिणाम क्या आ रहा है। शैक्षिक संस्थानों का परिणाम देखने जांचने के लिए छात्र ही बैरोमीटर होते हैं।’’

जावड़ेकर ने शिक्षा के अधिकार और नो डिटेंशन पॉलिसी पर बोलते हुये कहा, ‘‘हमें इस बात को देखने की आवश्यकता होगी कि क्या प्राथमिक शिक्षा में भी परिणाम आधारित शिक्षा को दिया जाए।

उन्होंने कहा, ‘‘हमने देखा है कि कक्षा आठ तक परीक्षा प्रणाली रद्द की गई। ऐसी प्रणाली शिक्षा व्यवस्था को नष्ट कर सकती है, इसलिए ही हमने सीखने के परिणाम का निर्माण किया, जो बताता है कि प्रत्येक कक्षा में छात्र ने वास्तव में क्या सीखा है।’’

जावड़ेकर ने कहा, ‘‘ इस बात की निगरानी करनी होगी कि क्या प्रत्येक छात्र के सीखने के परिणाम पूरे आये हैं या नहीं। यह हमारी शिक्षा प्रणाली की आधारशिला है।’’

इस साल जुलाई में शिक्षा के अधिकार में संशोधन विधेयक लोकसभा में पारित हो चुका है। यह संशोधन नो डिटेंशन नीति को खत्म करने को लाया गया था। इसके नीति के अनुसार छात्र को आठवीं कक्षा तक स्वत: ही एक कक्षा से अगली कक्षा में भेज दिया जाता है। एक अप्रैल, 2010 से यह अधिनियम लागू हुआ था।

हाल के दिनों में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने इस नीति के दुष्प्रभावों को देखते हुये इस मुद्दे को उठाया है। विश्वविद्यालय के कुलपति वरूण साहनी ने इस अवसर पर कहा कि यह ठीक नहीं है कि सभी विश्वविद्यालयों को रैंकिंग देने में समान मानकों का पालन क्योंकि सब विश्वविद्यालयों का आकार अलग अलग है।

इसके उत्तर में जावड़ेकर ने कहा, ‘‘ भविष्य में लघु विश्वविद्यालयों के लिए एक अलग रैंकिंग प्रणाली होगी।’’

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