पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कार्यक्रम में शामिल होने को लेकर विवाद के बीच संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि यह “निरर्थक” बहस है और उनके संगठन के लिए कोई भी बाहरी नहीं है। भागवत ने मुखर्जी के भाषण से पहले अपने संबोधन में कहा कि कार्यक्रम के बाद मुखर्जी वही रहेंगे जो वह हैं और संघ भी वही रहेगा जो वह है।
उन्होंने कहा कि हम भारतीय नागरिकों के बीच भेदभाव नहीं करते। हमारे लिए कोई भी भारतीय नागरिक बाहरी नहीं है। आरएसएस विविधता में एकता में विश्वास करता है। आरएसएस प्रमुख ने संघ कार्यकर्ताओं को इसको लेकर भी आगाह किया कि विनम्रता के अभाव में सत्ता हानिकारक बन सकती है और नैतिकता के बिना सत्ता अनियंत्रित हो जाती है।
मोहन भागवत ने कहा कि अपने कार्यक्रमों में प्रमुख व्यक्तियों को आमंत्रित करना आरएसएस की परंपरा रही है और मुखर्जी के दौरे को लेकर बहस की कोई जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा, “हमने उन्हें आमंत्रित किया। उन्होंने हमारी भावनाओं को स्वीकार किया और हमारे आमंत्रण को विनम्रतापूर्वक स्वीकार कर लिया। और अब इसको लेकर चर्चा कि उन्हें क्यों आमंत्रित किया गया और वह क्यों जा रहे हैं। इसका कोई मतलब नहीं है। यह आधारहीन है।”
उन्होंने कहा कि देश की सेवा करने के लिए अलग-अलग दृष्टिकोण या अलग-अलग तरीके हो सकते हैं। हालांकि हम सभी भारत माता के बच्चे हैं। उन्होंने इसका भी उल्लेख किया कि आरएसएस संस्थापक ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कांग्रेस के आंदोलनों सहित विभिन्न गतिविधियों में हिस्सा लिया।
भागवत ने कहा कि उनका संगठन पूरे समाज को एकजुट करना चाहता है और उसके लिए कोई भी बाहरी नहीं है। आज के कार्यक्रम में उपस्थित लोगों में पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के पुत्र सुनील शास्त्री और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के रिश्तेदार अर्द्धेन्दु बोस अपनी पत्नी और बेटे के साथ मौजूद थे।
इससे पूर्व मुखर्जी ने यहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के संस्थापक सरसंघचालक केशव बलिराम हेडगेवार की जन्मस्थली पर गये और उन्होंने उन्हें भारत माता का महान सपूत बताया। मुखर्जी ने यहां आरएसएस मुख्यालय में अपने बहुप्रतीक्षित भाषण से पहले हेडगेवार की जन्मस्थली पर आगंतुक पुस्तिका में लिखा, “आज मैं भारत माता के महान सपूत को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने आया हूं।”
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