मोदी सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने नोटबंदी को देश के लिए बड़ा, क्रूर और मौद्रिक झटका करार देते हुये कहा है कि इससे अनौपचारिक क्षेत्र पर काफी बुरा प्रभाव पड़ा। श्री सुब्रमण्यम के मुख्य आर्थिक सलाहकार के पद पर रहते हुए ही नवम्बर 2016 में सरकार ने नोटबंदी का महत्वपूर्ण निर्णय लिया था।
श्री सुब्रमण्यम ने इसी साल जून में निजी कारणों से पद छोड दिया था लेकिन उसके बाद उन्होंने अपनी पुस्तक में इस फैसले को देश के लिए घातक करार दिया है। उन्होंने अपनी इस पुस्तक ‘ऑफ काउंसेल : द चैलेंजेज ऑफ द मोदी जेटली इकोनॉमी’ में मोदी सरकार के इस फैसले के बारे में लिखा है ‘‘नोटबंदी एक बड़ी, क्रूर, मौद्रिक झटका था - एक ही झटके में 86 प्रतिशत मुद्रा प्रचलन से बाहर हो गयी। स्पष्ट रूप से इससे वास्तविक जीडीपी विकास प्रभावित हुआ। नोटबंदी से पहले की सात तिमाहियों में औसत विकास दर आठ प्रतिशत थी जो नोटबंदी के बाद की सात तिमाहियों में घटकर 6.8 प्रतिशत रह गयी।’’
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प्रधानमंत्री मोदी ने 08 नवंबर 2016 की रात आठ बजे राष्ट्र के नाम विशेष टेलीविजन संबोधन में अचानक 500 रुपये और एक हजार रुपये के उस समय प्रचलित 500 रुपये और 1000 रुपये के नोटों को आम इस्तेमाल के लिए प्रतिबंधित करने की घोषणा की थी। उस दिन रात 12 बजे से यह फैसला लागू हो गया था।
पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार ने पुस्तक में लिखा है कि आम तौर पर प्रचलन में मौजूद मुद्रा और जीडीपी का ग्राफ समानांतर चलता है। लेकिन, नोटबंदी के बाद जहाँ मुद्रा का ग्राफ बिल्कुल नीचे आ गया, वहीं जीडीपी के ग्राफ पर काफी कम असर पड़। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि जीडीपी के आँकड़ औपचारिक अर्थव्यवस्था के आधार पर तैयार किये जाते हैं।
अनौपचारिक क्षेत्र की गतिविधियों को मापने के लिए अभी कोई तरीका नहीं है। इसलिए, औपचारिक क्षेत्र के आकड़ों के आधार पर अनौपचारिक क्षेत्र के लिए अनुमानित आँकड़ तैयार किये जाते हैं। आम परिस्थितियों में यह तरीका सही हो सकता है, लेकिन नोटबंदी जैसे बड़ झटके के बाद जब मुख्य रूप से अनौपचारिक क्षेत्र ही प्रभावित हुआ हो इस तरीके से विकास दर के सही आँकड़ नहीं मिलते।
सुब्रमण्यम् ने कहा कि नोटबंदी का अर्थव्यवस्था पर उतना ज्यादा असर नहीं पड़ने के और भी कारण हो सकते हैं। हो सकता है लोगों ने भुगतान के नये रास्ते खोज लिये हों, हो सकता है कि औपचारिक क्षेत्र ने उत्पादन और उपभोग बनाये रखने के लिए ग्राहकों को उधारी दी हो। कुछ हद तक लोगों ने नकदी की बजाय डिजिटल माध्यमों से भुगतान को अपना लिया हो।
उन्होंने कहा कि हालिया इतिहास में इस तरह नोटबंदी का यह अकेला उदाहरण है। आम तौर पर कोई भी देश या तो आर्थिक या सामरिक आपातकाल के समय अचानक नोटबंदी करता है या फिर धीरे-धीरे पुरानी मुद्राओं को प्रचलन से हटाता है।
पुस्तक में इस बात पर भी विस्तार से चर्चा की गयी है कि लोगों को इतनी परेशानी होने के बावजूद केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी किस प्रकार तुरंत बाद के विधानसभा चुनाव - विशेषकर उत्तर प्रदेश में - जीतने में कामयाब रही। श्री सुब्रमण्यम् ने लिखा है कि संभवत: उत्तर प्रदेश में राजनीतिक सफलता के लिए नोटबंदी जैसा फैसला जरूरी था ‘‘जिसकी ज्यादा कीमत चुकानी पड़ और जो सभी वर्गों के लोगों को समान रूप से प्रभावित करे।’’ उन्होंने कहा कि इसका एक कारण यह हो सकता है कि नोटबंदी की तकलीफों को महसूस करने के बाद लोगों ने यह सोचा हो कि यदि उनकी तकलीफ इतनी है तो कालाधन वाले ‘बड़ लोगों’ की तकलीफ कितनी ज्यादा होगी।
उन्होंने लिखा है कि यदि किसी भी वर्ग को इससे छूट दी जाती तो लोगों के मन में सरकार की मंशा को लेकर शक पैदा हो जाता। यदि कालाधन के खिलाफ शांतिपूर्वक चुपचाप कोई कदम उठाया जाता तो उसका इतना प्रभाव नहीं पड़ता। इस फैसले से लोगों में संकेत गया कि मोदी सरकार कालाधन और भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए किसी भी तरह के मजबूत फैसले करने के लिए तैयार है।