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अब गूगल मेप बताएगा,कौन है साइिकल का पात्र

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श्योपुर: सरकारी स्कूलों में दूर गांव या बसाहट से कक्षा 6 व 9वीं में पढ़ने आने वाले विद्यार्थियों में कौन निःशुल्क साइिकल वितरण का पात्र है और कौन नहीं? इसका निर्धारण स्कूल प्रबंधन नहीं, बल्कि इंफ्रा मेपिंग एप करेगा। इस एप के जरिए वास्तविक रूप से पात्र होने पर ही संबंधित विद्यार्थी को साइकल मिल सकेगी। अफसरों का मानना है कि यह तरीका बहुत ही कारगर साबित होगा।

स्कूली शिक्षा विभाग ने निःशुल्क साइकल वितरण में बढ़ती गड़बड़ियों को रोकने के लिए अब नया तरीका ईजाद किया है। साइिकल किस विद्यार्थी को मिलनी है? यह स्कूल प्रबंधन नहीं,बल्कि गूगल के जरिए इंफ्रा मेपिंग तय करेगा। खास बात यह है कि यह व्यवस्था इसी सत्र से लागू कर दी गई है। इसके लिए शिक्षा विभाग ने जिले के लगभग सभी स्कूलों के साथ ही बसाहटों की मेपिंग इंफ्रा मेपिंग एप पर कर ली है।

आगामी दिनों में इसी तरीके से सही हाथों में साइकल पहुंचने लगेगी। उल्लेखनीय है कि पिछले कई वर्षों से कक्षा छंटवी एवं नौ वीं के विद्यार्थियों को शासन द्वारा आने-जाने के लिए साइिकल वितरण किया जा रहा है। लेकिन देखने में आया है कि इस योजना में जहां कई पात्र साइिकल वितरण से छूट जाते हैं,वहीं कई अपात्र लाभ प्राप्त कर लेते हैं, जिससे योजना के क्रियान्वयन पर ही नहीं,बल्कि विभाग के अधिकारियों समेत स्कूल प्रबंधन की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खडे होते आए हैं।

निःशुल्क साइकल किसी अपात्र विद्यार्थी के हाथ में न जाए? इसके लिए सरकार ने साइिकल वितरण के निर्धारण के लिए नई तकनीक का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। नए सिस्टम के तहत जब भी विद्यार्थियों को साइिकल वितरणकिया जाएगा,तब जीपीएस सिस्टम के जरिए विद्यार्थी घर की दूरी और स्कूल की दूरी पता चल जाएगी। इस योजना में जीपीएस ट्रेकर के माध्यम से स्कूल से विद्यार्थी के घर की दूरी यदि दो किमी या इससे अधिक आती है,तो उस विद्यार्थी को साइिकल दी जाएगी।

इस ऑनलाइन मेपिंग की वजह से ही शिक्षा विभाग साइकल वितरण में 4-5 माह पीछे चल रहा है। जबकि सत्र प्रारंभ हुए पांच माह हो गए हैं। कक्षा छटीं के विद्यार्थियों को 18 इंच ऊंची और नौ वीं के विद्यार्थियों को 20 इंच ऊंची साइिकल दी जाएगी। साइिकल वितरण योजना को शुरू हुए वर्षों हो गए हैं। इस दौरान स्कूल प्रबंधन की मनमानी के चलते जिले में सैकडों अपात्र विद्यार्थी साइकल वितरण योजना का लाभ ले चुके हैं। चूंकि पहले स्कूल एवं गांव की दूरी के निर्धारण के लिए कोई मेपिंग सिस्टम तो था नहीं,इसलिए प्रधानाध्यापक ने जिसका नाम वरिष्ठ कार्यालय को भेज दिया,उसे साइिकल मिल जाती थी। इसमें एचएम-अभिभावकों की मिलीभगत होती थी।

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