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कोरोना के बाद अब प्रकृति बरपा रही कहर, मौसमी घटनाओं के कारण हर दिन औसतन 8 लोगों की हो रही मौत

देश में प्रतिकूल मौसम से जुड़ी घटनाओं के कारण हर दिन औसतन करीब आठ लोगों की मौत हो रही है। इसमें सबसे अधिक मौत भारी बारिश के कारण उत्पन्न स्थिति के कारण हुई है।

देश में प्रतिकूल मौसम से जुड़ी घटनाओं के कारण हर दिन औसतन करीब आठ लोगों की मौत हो रही है। इसमें सबसे अधिक मौत भारी बारिश के कारण उत्पन्न स्थिति, आकाशीय बिजली गिरने, लू, गर्जना तूफान, शीतलहर और धूलभरी आंधी के कारण हुई है। भारत मौसम विज्ञान विभाग द्वारा संकलित विषम मौसमी घटनाओं के कारण वर्ष 2010 से 2021 के मध्य तक होने वाली मौतों के आंकड़ों से यह बात सामने आई है।
इसमें कहा गया है, ‘‘विषम मौसमी घटनाओं के कारण पिछले साढ़े ग्यारह वर्षों की अवधि में 32,043 लोगों की मौत हुई।’’ इस प्रकार, हर दिन औसतन करीब आठ लोगों की मौत हो रही है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा प्रकाशित जलवायु परिवर्तन संबंधी ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि बीसवीं सदी के मध्य से भारत में औसत तापमान में वृद्धि देखी गई है, मानसूनी वर्षा में कमी आई है, विषम तापमान एवं वर्षा की घटनाओं, सूखा और समुद्र के जलस्तर में वृद्धि हुई है।
इसमें कहा गया है कि गंभीर चक्रवात की तीव्रता में वृद्धि हुई है तथा क्षेत्रीय जलवायु में इन परिवर्तनों के पीछे मानवीय गतिविधियां पाए जाने के काफी बाध्यकारी वैज्ञानिक साक्ष्य पाए गए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘21वीं सदी में भी मानव प्रेरित जलवायु परिवर्तन इसी गति से जारी रहने की संभावना है।’’
वहीं, मौसम विज्ञान विभाग द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार, भारी वर्षा के कारण उत्पन्न स्थितियों के कारण वर्ष 2010 से 2021 के मध्य तक 13,303 लोगों की मौत हुई जबकि लू के कारण 6,495 और शीतलहर के कारण 2,489 लोगों की मौत हुई। गर्जना तूफान के कारण इस अवधि में 3,832 लोगों की मौत हुई तथा चक्रवाती तूफान के कारण 895, धूलभरी आंधी के कारण 446 एवं हिमपात के कारण 345 लोगों की मौत हुई।
दूसरी ओर, जलवायु परिवर्तन पर मूल्यांकन रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 1901 से लेकर 2018 के दौरान भारत के औसत तापमान में लगभग 0.7 डिग्री सेल्सिसय की वृद्धि हुई है। हाल के 30 वर्षों की अवधि (1986 से 2015) के दौरान वर्ष के सबसे गर्म दिन और सबसे ठंडी रात के तापमान में क्रमश: 0.63 डिग्री सेल्सियस तथा 0.4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है।
इसमें कहा गया है कि सतह के तापमान और आर्द्रता में संयुक्त वृद्धि से पूरे भारत और खास तौर पर गंगेय एवं सिंधु घाटी क्षेत्र में लू बढ़ने की संभावना है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 1951 से 2015 के बीच उष्णदेशीय हिंद महासागर के समुद्री सतह तापमान में औसतन 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। पिछले छह से सात दशकों के दौरान मौसमी ग्रीष्मकालीन वर्षों में समग्र कमी के चलते भारत में सूखा पड़ने की घटनाओं में वृद्धि देखी गई है।

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