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केंद्र सरकार द्वारा अध्यादेश के फैसले पर AAP सांसद राघव चड्ढा ने कहा- ‘यह संवैधानिक शक्तियों का उल्लंघन’

राष्ट्रीय राजधानी में सेवाओं को राज्य सरकार के नियंत्रण में रखने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को खारिज करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा अध्यादेश लाए जाने के एक दिन बाद आप के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा ने सरकार की आलोचना की।

 राजधानी में सेवाओं को राज्य सरकार के नियंत्रण में रखने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को खारिज करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा अध्यादेश लाए जाने के एक दिन बाद आप के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा ने सरकार की आलोचना की। साथ ही उन्होंने कहा कि यह संघवाद व चुनी हुई सरकारों को दी गई संवैधानिक शक्तियों का पूरी तरह से उल्लंघन है।
ट्वीट्स की एक श्रृंखला में चड्ढा ने कहा संघवाद के पूर्ण उल्लंघन में एक लापरवाह राजनीतिक अध्यादेश द्वारा एक सुविचारित, सर्वसम्मत संविधान पीठ के फैसले को पलटना, संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा, निर्वाचित सरकारों को दी गई संवैधानिक शक्तियां, मंत्रियों के प्रति सिविल सेवाओं की जवाबदेही का सिद्धांत और यह न सिर्फ कोर्ट की अवमानना है बल्कि मतदाताओं की भी अवमानना है।उनकी टिप्पणी केंद्र द्वारा सुप्रीम कोर्ट के फैसले को खारिज के लिए अध्यादेश जारी करने के एक दिन बाद आई है, जिसने दिल्ली सरकार को ‘सेवाओं’ का नियंत्रण दिया था।
मतभेद की स्थिति उपराज्यपाल का निर्णय अंतिम होगा
केंद्र सरकार राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण के रूप में एक स्थायी प्राधिकरण स्थापित करने के लिए एक अध्यादेश लाई है, जिसके अध्यक्ष दिल्ली के मुख्यमंत्री दिल्ली के मुख्य सचिव, प्रधान सचिव (गृह) के साथ स्थानांतरण पोस्टिंग, सतर्कता और अन्य प्रासंगिक मामलों से संबंधित मामलों में दिल्ली एलजी को सिफारिशें करने के लिए होंगे। मतभेद की स्थिति में उपराज्यपाल का निर्णय अंतिम होगा।
दिल्ली सरकार को नियंत्रण दिये जाने के बाद यह अध्यादेश आया
11 मई को, सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया कि यह मानना सही है कि लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई दिल्ली सरकार का अपने अधिकारियों पर नियंत्रण होना चाहिए और एलजी सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस और जमीन के अलावा हर चीज में चुनी हुई सरकार की सलाह मानने के लिए बाध्य हैं। शीर्ष अदालत ने जोर देकर कहा कि अगर सरकार अपनी सेवा में तैनात अधिकारियों को नियंत्रित करने और उन्हें हिसाब में रखने में सक्षम नहीं है, तो विधायिका के साथ-साथ जनता के प्रति उसकी जिम्मेदारी कम हो जाती है।शीर्ष अदालत द्वारा अधिकारियों के तबादले और तैनाती समेत सेवा मामलों में दिल्ली सरकार को नियंत्रण दिये जाने के बाद यह अध्यादेश आया।

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