लोकसभा में शुक्रवार को कांग्रेस सहित विपक्षी दलों ने मानवाधिकार संरक्षण संशोधन विधेयक को वर्तमान रूप में पेश किये जाने का विरोध किया और कहा कि इसमें कई खामियां हैं और यह विधेयक इस विषय पर पेरिस समझौते के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है।
विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए सरकार ने कहा कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और राज्य मानवाधिकार आयोगों को और अधिक सक्षम बनाने के लिए यह विधेयक लाया गया है।
गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा कि मोदी सरकार की नीति है कि ‘‘न किसी पर अत्याचार हो, न किसी अत्याचारी को बख्शा जाए’’। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा नीत सरकार की नीतियों के केंद्र में ‘‘मानव और मानवता का संरक्षण’’ है।
निचले सदन में मानवाधिकार संशोधन विधेयक 2019 पर चर्चा की शुरूआत करते हुए कांग्रेस नेता शशि थरूर ने आरोप लगाया कि मानवाधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को दिए गए आश्वासन को पूरा करने और पेरिस समझौते के अनुरूप इस दिशा में कदम उठाने के लिए यह संशोधन विधेयक लाया गया है। लेकिन यह दिखावे का प्रयास है ।
उन्होंने जोर दिया कि राष्ट्रीय एवं राज्य मानवाधिकार आयोगों में स्वायत्तता की कमी है और यह एक ऐसी संस्था है जो शक्तिशाली तो है लेकिन कुछ कर पाने में सक्षम नहीं है। इस संशोधन में आयोग के विविधिकरण करने पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है।
कांग्रेस नेता ने कहा कि अध्यक्ष एवं सदस्यों के कार्यकाल को पांच साल की अवधि से घटा कर तीन साल करने का इसके कामकाज पर बुरा असर पड़ेगा और लंबे चलने वाले मामले के निपटारे से पहले ही कई सदस्यों का कार्यकाल खत्म हो जाएगा।
उन्होंने कहा कि इस अधिनियम में मानवाधिकार अदालतों के क्षेत्राधिकार को स्पष्ट करने का कोई प्रावधान नहीं है।
थरूर ने असम में राष्ट्रीय नागरिक पंजी के चलते कई लोगों के आत्महत्या करने का आरोप भी लगाया, साथ ही हाल ही में अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह और उनके पति के आनंद ग्रोवर के यहां छापे मारे जाने तथा मानवाधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज की गिरफ्तारी का विषय भी उठाया।
चर्चा में भाग लेते हुए भाजपा के सत्यपाल सिंह ने कहा कि मानवाधिकार विदेश की परिकल्पना है जबकि भारत की परंपरा में व्यक्तित्व के निर्माण ओर संस्कार पर जोर दिया गया है। हमने दुनिया को ‘‘वसुधैव कुटुंबकम’’ दिया है।
उन्होंने कहा कि हमें संस्कार दिया गया है कि हम अपने साथ जैसा व्यवहार चाहते हैं वैसा दूसरों के साथ भी व्यवहार करें।
सिंह ने दावा किया कि देश में ज्यादातर संगठन की फंडिंग विदेश से होती है और वे आतंकवादियों, नक्सलियों एवं अपराधियों के बजाय देश की संस्थाओं पर सवाल करते हैं। मानवाधिकार को लेकर इनकी दोहरी नीति है।
उन्होंने मानवता के उदय के संदर्भ में कुछ टिप्पणी की जिसे द्रमुक और तृणमूल कांग्रेस के सदस्यों ने वैज्ञानिक सोच के खिलाफ करार दिया।
चर्चा में भाग लेते हुए द्रमुक की कनिमोई ने कहा कि देश में वैज्ञानिक सोच को मजबूत बनाए बिना मानवाधिकार की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं।
उन्होंने सवाल किया कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के पास रोजाना औसतन 450 मामले आते हैं, ऐसे में सिर्फ एक सदस्य बढ़ाने से क्या फायदा होगा?
बीजद के पिनाकी मिश्रा ने कहा कि हमें जो चीज पाकिस्तान, चीन और रूस से अलग करती है, वह हमारा संवैधानिक रूप से कहीं अधिक मान्य मानवाधिकार आयोग है। लेकिन इसकी एनएचआरसी की सालाना रिपोर्ट काफी देर से आती है। सशस्त्र बलों द्वारा की जाने वाली हत्याओं पर रोक नहीं लगाना भी एक अच्छी स्थिति नहीं है।