प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज ‘मन की बात’ कार्यक्रम के दौरान भारत के नवनिर्माण में नारी शक्ति के योगदान की प्रशंसा करते हुए कहा कि वैश्विक ताकत के रूप में उभरते नये भारत में नयी सोच के साथ आगे बढ़ने के लिये देश की महिला शक्ति ने पहल की हैं जिसमे माताएं बहनें आगे बढ़कर चुनौतियों को स्वीकार कर समाज को सकारात्मक परिवर्तन का संदेश दे रही हैं।
मोदी ने आकाशवाणी पर प्रसारित ‘मन की बात’ कार्यक्रम में अपने संबोधन में कहा, ‘‘हमारा नया भारत, अब पुरानी सोच के साथ चलने को तैयार नहीं है। खासतौर पर ‘न्यू इंडिया’ की हमारी माताएं और बहने तो आगे बढ़कर ऐसी चुनौतियों को अपने हाथों में ले रही हैं जिनसे पूरे समाज में सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिल रहा है।’’
साथ ही प्रधानमंत्री मोदी ने बिहार के पूर्णिया में महिलाओं के साझा उपक्रम की प्ररेणादायक सफल कहानी को साझा करते हुये कहा, ‘‘ये वो इलाका है जो दशकों से बाढ़ की त्रासदी से जूझता रहा है। ऐसे में यहां खेती और आय के अन्य संसाधनों को जुटा पाना बहुत मुश्किल रहा है। मगर इन्हीं परिस्थितियों में पूर्णिया की कुछ महिलाओं ने एक अलग रास्ता चुना।’’
उन्होंने इस इलाके के महिलाओं के बारे में बताते हुए कहां कि पहले यहां की महिलाएं, शहतूत या मलबरी के पेड़ पर रेशम के कीड़ों से कोकून तैयार करती थीं जिसका उन्हें बहुत मामूली दाम मिलता था। जबकि उसे खरीदने वाले लोग, इन्हीं कोकून से रेशम का धागा बना कर मोटा मुनाफा कमाते थे।
इस तस्वीर को बदल देने वाली पूर्णिया की महिलाओं की नई शुरुआत का जिक्र करते हुये मोदी ने कहा, ‘‘इन महिलाओं ने सरकार के सहयोग से, मलबरी-उत्पादन समूह बनाए। इसके बाद उन्होंने कोकून से रेशम के धागे तैयार किये और फिर उन धागों से खुद ही साड़ियां बनवाना भी शुरू कर दिया। उन्होंने कहा, ‘आदर्श जीविका महिला मलबरी उत्पादन समूह’ की दीदियों ने जो कमाल किये हैं, उसका असर अब कई जगहों पर देखने को मिल रहा है। पूर्णिया के कई गांवो की किसान दीदियां, अब न केवल साड़ियां तैयार करवा रही हैं, बल्कि बड़े -बड़े मेलों में, अपने स्टाल लगा कर इन्हें बेच भी रही हैं।’’ मोदी ने कहा कि यह इस बात का उदाहरण है कि आज की महिला शक्ति, नई सोच के साथ किस तरह नए लक्ष्यों को प्राप्त कर पा रही हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘हमारे देश की महिलाओं में, हमारी बेटियों की उद्यमशीलता, उनका साहस, हर किसी के लिए गर्व की बात है। अपने आस पास हमें अनेकों ऐसे उदाहरण मिलते हैं जिनसे पता चलता है कि बेटियां किस तरह पुरानी बंदिशों को तोड़कर, नई ऊंचाइयों को प्राप्त कर रही हैं।’’
मोदी ने इस दौरान बारह साल की काम्या कार्तिकेयन और 105 साल की भागीरथी अम्मा की उपलब्धि का भी जिक्र किया।
मोदी ने काम्या की कहानी बताते हुये कहा, ‘‘काम्या ने, सिर्फ, बारह साल की उम्र में ही दक्षिण अमेरिका महाद्वीप में एंडीज पर्वत की सबसे ऊंची पर्वत चोटी मांउट अकोंकागुआ को फ़तेह करने का कारनामा कर दिखाया है। हर भारतीय को ये बात छू जायेगी कि इस महीने की शुरुआत में काम्या ने इस चोटी को फ़तेह कर सबसे पहले, वहाँ, हमारा तिरंगा फहराया।’’
मोदी ने सीखने की ललक और जिजीविषा को जिंदा रखने के लिये केरल के कोल्लम की भागीरथी अम्मा का उदाहरण देते हुये कहा कि अम्मा ने 105 साल की उम्र में न सिर्फ स्कूली पढ़ाई शुरु की बल्कि परीक्षा में 75 प्रतिशत अंकों के साथ उत्तीर्ण भी हुयीं। उन्होंने कहा, ‘‘भागीरथी अम्मा जैसे लोग, इस देश की ताकत हैं| वह प्रेरणा की एक बहुत बड़ी स्रोत हैं, मैं आज विशेष-रूप से भागीरथी अम्मा को प्रणाम करता हूँ|’’
प्रधानमंत्री ने विपरीत परिस्थितियों में इच्छाशक्ति के सहारे अपना हौसला बरकरार रखने की नसीहत देते हुये मुरादाबाद के सलमान और कच्छ के इस्माइल खत्री की उपलब्धियों को भी साझा किया। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में मुरादाबाद के हमीरपुर गांव के सलमान जन्म से ही दिव्यांग हैं। इस कठिनाई के बावजूद भी उन्होंने हार नहीं मानी और खुद ही अपना काम शुरू करने और अपने जैसे दिव्यांग साथियों की मदद करने का फैसला किया।
मोदी ने बताया कि सलमान ने अपने ही गांव में चप्पल और डिटर्जेंट बनाने का काम शुरू कर अपने साथ 30 दिव्यांग साथियों को जोड़ा। उन्होंने कहा, ‘‘सलमान को खुद चलने में दिक्कत थी लेकिन उन्होंने दूसरों का चलना आसान करने वाली चप्पल बनाने का फैसला किया।’’
प्रधानमंत्री ने सलमान के प्रयास को सलाम करते हुये कहा, ‘‘सलमान ने, साथी दिव्यांगजनों को खुद ही प्रशिक्षण देकर अब उनके साथ मिलकर अपने उत्पादों का विनिर्माण और मार्केटिंग भी कर रहे हैं। जिसके बलबूते इन लोगों ने स्वरोजगार का मार्ग प्रशस्त करते हुये अपनी कंपनी को मुनाफे में पहुंचा दिया। इतना ही नहीं, सलमान ने इस साल 100 और दिव्यांगो को रोजगार देने का संकल्प भी लिया है।’’
प्रधानमंत्री ने गुजरात में कच्छ के अजरक गांव के लोगों की संकल्प शक्ति की ऐसी ही एक अन्य कहानी का जिक्र करते हुये कहा, ‘‘साल 2001 में आए विनाशकारी भूकंप के बाद सभी लोग गांव छोड़ रहे थे, तभी, इस्माइल खत्री नाम के शख्स ने, गांव में ही रहकर, ‘अजरक प्रिंट’ की अपनी पारंपरिक कला को सहेजने का फैसला लिया।’’ उन्होंने बताया कि देखते ही देखते प्रकृति के रंगों से बनी ‘अजरक कला’ हर किसी को लुभाने लगी और पूरा गांव, हस्तशिल्प की अपनी पारंपरिक विधा से जुड़ गया।
मोदी ने सैकड़ों वर्ष पुरानी इस कला को सहेजने के लिए गांव वालों की सराहना करते हुये कहा कि अब यह कला आधुनिक फैशन से भी जुड़ गयी है। उन्होंने कहा कि अब नामी डिजायनर और अग्रणी संस्थान, ‘अजरक प्रिंट’ का इस्तेमाल करने लगे हैं।