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Winter Session: निलंबन वापसी पर संसद में गतिरोध दूसरे सप्ताह भी जारी, विपक्ष ने माफी मांगने से किया इंकार

संसद के शीतकालीन सत्र के पहले ही दिन 12 सदस्यों को पूरे सत्र के लिए निलंबित करने पर राज्यसभा में जारी गतिरोध दूसरे सप्ताह भी बना रहा और सत्ता पक्ष एवं विपक्ष अपने रुख से पीछे हटने को तैयार नहीं दिखे।

संसद के शीतकालीन सत्र के पहले ही दिन 12 सदस्यों को पूरे सत्र के लिए निलंबित करने पर राज्यसभा में जारी गतिरोध दूसरे सप्ताह मंगलवार को भी बना रहा और सत्ता पक्ष एवं विपक्ष अपने रुख से पीछे हटने को तैयार नहीं दिखे। सरकार ने मंगलवार को उच्च सदन में कहा कि यदि निलंबित सदस्यों ने माफी नहीं मांगी तो उसे शोरगुल में विधेयक पारित कराने को मजबूर होना पड़ेगा वहीं विपक्ष ने माफी मांगने से साफ इंकार करते हुए कहा कि इन 12 सदस्यों का निलंबन सरकार को वापस लेना चाहिए।
दो बार के स्थगन के बाद उच्च सदन की बैठक जब अपराह्न तीन बजे शुरू हुई तो संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा, ‘‘हम सरकार की तरफ से कहना चाहते हैं कि हम शोरगुल में विधेयक पारित नहीं करना चाहते। मैं आपके (आसन) माध्यम से अनुरोध करता हूं कि वे (निलंबित विपक्षी सदस्य) माफी मांगें।’’ उन्होंने कहा, ‘‘जो कुछ हुआ है, उसे पूरे देश ने देखा है। (एक विपक्षी सदस्य) टेबल पर नाचा है। मार्शल को मारने गया है… टीवी स्क्रीन निकाल कर फेंकने का प्रयास किया गया है। यह सब देश ने देखा है।’’
जोशी ने कहा, ‘‘हम फिर आग्रह करना चाहते हैं कि हम शोरगुल में विधेयक पारित नहीं करना चाहते। किंतु आप (विपक्ष) हमें इसके लिए मजबूर मत करिए… इसलिए मैं फिर अनुरोध करता हूं कि उन्हें माफी मांगने दो।’’  जोशी ने जब यह बात कही, उस समय उपसभापति हरिवंश ने स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री मनसुख मांडविया से सहायताप्राप्त जननीय प्रौद्योगिकी (विनियमन) विधेयक, 2021 और सरोगेसी (विनियमन) विधेयक, 2020 को चर्चा के लिए पेश करने को कहा था। इस दौरान विपक्ष के कई सदस्य निलंबित सदस्यों के निलंबन को वापस लेने की मांग पर आसन के समक्ष आकर नारे लगा रहे थे।
इससे पहले विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओ ब्रायन ने अलग अलग समय पर विपक्ष के निलंबित सदस्यों का निलंबन समाप्त किए जाने की मांग सदन में उठायी थी। बाद में खड़गे ने संसद भवन के बाहर संवाददाताओं से कहा कि अगर निलंबन जल्द रद्द नहीं हुआ तो राज्यसभा के विपक्षी सदस्य निलंबित सदस्यों के समर्थन में पूरे दिन धरने पर बैठेंगे।
खड़गे ने आरोप लगाया, ‘‘राज्यसभा में जो गतिरोध पैदा हो रहा है, उसके लिए सरकार जिम्मेदार है। हमने बहुत कोशिश की है कि सदन चले। हमने सदन के नेता (पीयूष गोयल) और सभापति (वेंकैया नायडू) से बार-बार यही कहा कि आप नियम के तहत ही निलंबित कर सकते हैं, लेकिन आपने नियम को छोड़ दिया और मानसून सत्र की घटनाओं के लिए हमारे 12 सदस्यों को गलत तरीके से निलंबित किया।’’
उनके मुताबिक, निलंबित करने से पहले सदस्यों को नामित किया जाना चाहिए। इसके बाद प्रस्ताव आता और फिर निलंबन होना चाहिए। यह भी उसी दिन यानी 11 अगस्त, 2021 को होना चाहिए था। खड़गे ने दावा किया, ‘‘विपक्षी सदस्यों को अलोकतांत्रिक तरीके से निलंबित किया गया है। हम बार बार सभापति से निवेदन कर रहे हैं कि हमारे सदस्यों के अधिकारों की रक्षा करना आपका फर्ज है। क्या वह सरकार के दबाव में हैं, यह हमें मालूम नहीं है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘इस सत्र में हम बहुत मुद्दे उठाने चाहते थे। इससे पहले हमने 12 सदस्यों का निलंबन रद्द करने का आग्रह किया। लेकिन सरकार नहीं मानी। ऐसा लगता है कि सरकार की मंशा चर्चा करने की नहीं है।’’ राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष ने कहा, ‘‘हमारी आवाज दबाने की कोशिश की जा रही है। मोदी जी तानाशाही तरीके से सदन और सरकार चलाना चाहते हैं।’’
द्रमुक के तिरुची शिवा ने कहा, ‘‘हम शुरू से कह रहे हैं कि निलंबन का फैसला अलोकतांत्रिक है और नियमों के मुताबिक नहीं है। इसलिए हम इसे रद्द करने की मांग कर रहे हैं।’’ उन्होंने यह भी कहा कि सरकार एक तरह से यह आरोप लगाना चाहती है कि विपक्ष चर्चा से भाग रहा है, जबकि ऐसा नहीं है। लोकसभा में सभी दल चर्चा में शामिल हैं। राज्यसभा में सदस्यों के अधिकारों और संसद को सुचारू रूप से चलाने के लिए लड़ रहे हैं। सिर्फ निलंबन रद्द करने से ही सदन चल सकता है। 
पिछले सप्ताह सोमवार, 29 नवंबर को आरंभ हुए संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन राज्यसभा में कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों के 12 सदस्यों को इस सत्र की शेष अवधि के लिए उच्च सदन से निलंबित कर दिया गया था।
जिन सदस्यों को निलंबित किया गया है उनमें मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के इलामारम करीम, कांग्रेस की फूलो देवी नेताम, छाया वर्मा, रिपुन बोरा, राजमणि पटेल, सैयद नासिर हुसैन, अखिलेश प्रताप सिंह, तृणमूल कांग्रेस की डोला सेन और शांता छेत्री, शिव सेना की प्रियंका चतुर्वेदी और अनिल देसाई तथा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के विनय विस्वम शामिल हैं।

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