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संसदीय समिति ने नए कानून की आवश्यकता पर केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो के मांगे विचार

संसद की एक समिति ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) से उसके प्राधिकार को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने तथा उसे और शक्तियां देने के लिए एक नया कानून लाने या मौजूदा कानूनों में संशोधन की आवश्यकता पर उसके सुझाव मांगे हैं। संघीय जांच एजेंसी में 1,000 से अधिक पदों के रिक्त होने का जिक्र करते हुए उसने सीबीआई से इस बात की रूपरेखा तैयार करने को कहा है कि कैसे और कब तक उसकी इतनी बड़ी संख्या में रिक्तियों को भरने की योजना है। 

एक रिपोर्ट में समिति ने यह भी उम्मीद जतायी कि सरकार निगरानी की क्षमताओं को मजबूत करने और एक केंद्रीकृत निगरानी डेटाबेस बनाने के लिए केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) को पर्याप्त निधि मुहैया कराए।समिति ने राज्यों द्वारा आम सहमति वापस लेने से सीबीआई की जांच में बाधा पैदा होने के उसके विचारों से सहमति जताते हुए पहले की अपनी रिपोर्ट में सरकार से यह आकलन करने की सिफारिश की थी कि क्या सीबीआई के प्राधिकारों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने तथा उसे और शक्तियां प्रदान करने के लिए नया कानून लाने या मौजूदा कानूनों में संशोधन की आवश्यकता है। 

उसे बताया गया कि राज्य सरकारों ने सीबीआई को राज्य में जांच करने के लिए दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान (डीएसपीई) कानून की धारा छह के तहत दी गयी आम सहमति वापस ले ली है और वे अब प्रत्येक मामले के आधार पर सहमति दे रहे हैं। 

संसद में 10 दिसंबर को पेश की गयी रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘समिति यह बताती है कि सीबीआई ने उसके अधिकारों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने तथा उसे और शक्तियां प्रदान करने के लिए नया कानून लाने या मौजूदा कानूनों में संशोधन की आवश्यकता पर अपने विचार नहीं सौंपे हैं। समिति इस संबंध में सीबीआई से अपने विचार रखने का अनुरोध करती है।’’ भारतीय जनता पार्टी के नेता सुशील कुमार मोदी की अगुवाई में कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय पर विभाग से संबंधित संसद की स्थायी समिति ने यह रिपोर्ट दी है। 

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