नयी दिल्ली : राज्यसभा के सभापति एम . वेंकैया नायडू ने कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दलों द्वारा प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ दिये महाभियोग के नोटिस में ठोस कारणों की कमी बताते हुए आज उसे खारिज कर दिया। सूत्रों ने यह जानकारी दी। उपराष्ट्रपति कार्यालय के सूत्रों ने भी इसकी पुष्टि की है। नायडू ने इस संबंध में शीर्ष कानूनी और संवैधानिक विशेषज्ञों के साथ गहन विचार – विमर्श के बाद यह फैसला लिया है।
सूत्रों का कहना है कि उपराष्ट्रपति नायडू ने मामले की गंभीरता को देखते हुए अपने यात्रा कार्यक्रमों में बदलाव किया और इस मामले में कई विशेषज्ञों के साथ सलाह मश्विरा किया। कांग्रेस सहित सात राजनीतिक दलों ने महाभियोग नोटिस दिया था। यह पहली बार है जब किसी वर्तमान प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग का नोटिस दिया गया था। वैंकेया के इस फैसले पर आज डेढ़ बजे कांग्रेस करेगी विचार। इस महाभियोग को कांग्रेस समेत 7 दल लेकर आए थे।
कानून विशेषज्ञों से बात कर उठाएंगे अगला कदम ः कांग्रेस
CJI दीपक मिश्रा के खिलाफ राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू द्वारा महाभियोग प्रस्ताव को खारिज करने के बाद कांग्रेस ने कहा कि पार्टी और अन्य विपक्षी दल इस मसले पर कानून विशेषज्ञों से बात करेंगे. इसके बाद अगला कदम उठाया जाएगा। कांग्रेस नेता पीएल पूनिया ने कहा कि यह वास्तव में बहुत महत्वपूर्ण मामला है। हमें नहीं पता कि महाभियोग प्रस्ताव को खारिज करने के पीछे क्या वजह थी। कांग्रेस पार्टी और अन्य विपक्षी दल इस मुद्दे पर कानून विशेषज्ञों से बात करने के बाद अगला कदम उठाएंगे। कहा जा रहा है कि महाभियोग नोटिस पर दस्तखत करने वाले राज्यसभा सदस्य इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में है।
सिब्बल का ऐलान – मिश्रा पद से न हटे तो उनकी कोर्ट में नहीं जाऊंगा
इससे पहले आज सुबह कांग्रेस नेता और सुप्रीम कोर्ट में अरसे से प्रैक्टिस कर रहे कपिल सिब्बल ने ऐलान कर दिया है कि अगर जस्टिस दीपक मिश्रा रिटायरमेंट तक पद पर बने रहते हैं तो वे उनकी कोर्ट में पेश नहीं होंगे। उधर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विपक्ष द्वारा लाये जा रहे महाभियोग के मुद्दे पर उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू से आज मुलाकात करेंगे। सूत्रों के मुताबिक इससे पहले रविवार को राज्यसभा के चेयरमैन वेंकैया नायडू ने महाभियोग के नोटिस पर विचार विमर्श शुरू किया है।
क्या है महाभियोग और जज को कैसे पद से हटाया जा सकता है?
कपिल सिब्बल ने कहा है कि वे सोमवार से सीजेआई दीपक मिश्रा की कोर्ट में नहीं जाएंगे। उन्होंने कहा कि अब जब तक चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रिटायर नहीं हो जाते, वे तब तक उनकी कोर्ट में नहीं उपस्थित होंगे। सिब्बल ने अपने फैसले को पेशेगत मूल्यों के अनुरूप बताया है।
सिब्बल ने कहा कि मेरे साथ 63 अन्य लोगों ने भी जस्टिस दीपक मिश्रा को हटाने की मांग की है। अब मैं सोमवार से सीजेआई की अदालत में नहीं जाऊंगा। गौरतलब है कि सिब्बल काफी अरसे से सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे हैं। सिब्बल ने कहा कि अगर सीजेआई दीपक मिश्रा रिटायरमेंट तक सुनवाई करेंगे तो यह मानकों के खिलाफ होगा।
कांग्रेस में दोफाड़ पर दी सफाई
जब सिब्बल से पूछा गया कि राज्यसभा सभापति वेंकैया नायडू को भेजे गए महाभियोग के प्रस्ताव पर पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम समेत कई बड़े कांग्रेस नेताओं ने हस्ताक्षर क्यों नहीं किया? इस पर सिब्बल ने कहा कि कांग्रेस ने ही चिदंबरम से हस्ताक्षर करने के लिए नहीं कहा, क्योंकि उन पर कई मामले लंबित हैं और मैं उनका वकील हूं। सीजेआई की अदालत में अब न जाने का मेरा फैसला उनके लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है. सिब्बल इस समय पी चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम के केस के साथ-साथ अयोध्या समेत कई अहम मामलों में पैरवी कर रहे हैं।
सबकी नजरें अब वेंकैया पर
इधर महाभियोग के प्रस्ताव पर अब सभी की नजरें उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू पर टिक गईं हैं। उन्होंने अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल सहित संविधानविदों और कानूनी विशेषज्ञों के साथ प्रस्ताव पर विचार-विमर्श किया। राज्यसभा सचिवालय के सूत्रों के अनुसार नायडू ने याचिका को स्वीकारने अथवा ठुकराने को लेकर संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप, पूर्व विधि सचिव पी.के. मल्होत्रा सहित अन्य विशेषज्ञों से कानूनी राय ली. ऐसा माना जा रहा है कि नायडू जल्द ही विपक्षी दलों के इस नोटिस पर कोई फैसला करेंगे।
बनानी होगी 3 सदस्यों की समिति
बता दें कि शुक्रवार को कांग्रेस सहित 7 विपक्षी दलों ने राज्यसभा के सभापति नायडू को चीफ जस्टिस मिश्रा के खिलाफ कदाचार का आरोप लगाते हुए उन्हें पद से हटाने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए नोटिस दिया था। नायडू अगर इस नोटिस को स्वीकार करते हैं तो प्रक्रिया के नियमों के अनुसार विपक्ष की ओर से लगाए गए आरोपों की जांच के लिए उन्हें न्यायविदों की 3 सदस्यों की एक समिति का गठन करना होगा।
संसदीय नियमों का उल्लंघन
राज्यसभा के सभापति को नोटिस सौंपने के बाद विपक्षी दलों ने संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया था। नोटिस की समीक्षा करते हुए राज्यसभा के अधिकारियों ने जिक्र किया कि सभापति की ओर से नोटिस को स्वीकार करने से पहले इसे सार्वजनिक करना संसदीय नियमों का उल्लंघन है।
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