रायपुर: छत्तीसगढ़ के चुनावी मिशन में राजनीतिक दलों के बीच घमासान का दौर तेज हो गया है। सत्ताधारी दल भाजपा अपनी योजनाओं के साथ चुनावी वादों पर अधिक फोकस कर रही है। सूत्रों के मुताबिक चुनावी वर्ष के आम बजट में सरकार की ओर से अपने घोषणा पत्र के वादों को शामिल करने और पूरा करने पर जोर होगा। वहीं विपक्ष की ओर से सरकार की नाकामियों के साथ चुनावी घोषणा पत्र पर वादाखिलाफी को लेकर सरकार की घेरेबंदी होगी। इस मामले में राजनीतिक उठापटक का दौर पहले ही तेज हो चुका है।
राज्य में सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच चुनावी मैदान में नजदीकी संघर्ष ही होता रहा है। सरकार के कामकाज को आधार बनाकर इस बार भी सत्ताधारी दल फिर आश्वस्त होने के साथ दावे कर रही है। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस भी दावों में पीछे नहीं है। कांग्रेस भी बीते तीन विधानसभा चुनाव से अपना ग्राफ बढ़ाती आ रही है। तीनों चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर लगातार बढ़ा है। वहीं सीटें भी स्थिर है। यही वजह है कि छत्तीसगढ़ में सत्ता तक पहुंचने के रास्ते को विपक्ष के रणनीतिकार अधिक मुश्किलों भरा नहीं मान रहे हैं।
चुनावी बजट में सरकार अपने घोषणा पत्र के वादों को शामिल किया तो इस पैंतरे के बाद विपक्ष को नई रणनीति के तहत सरकार की घेरेबंदी करनी पड़ सकती है। चुनाव में कई ऐसे वादे रहे जो पूरे नहीं हो पाए हैं। विपक्ष ने इसी पर ही फोकस करते हुए कवायदें की है। हालांकि वादाखिलाफी के मामले में बोनस को लेकर सरकार की ओर से अधिक जोर रहा है। बोनस के मसले पर सरकार ने अंतिम दो वर्ष में प्रोत्साहन राशि किसानों को देने का ऐलान कर डेमेज कंट्रोल करने की कोशिश की है। इसके बावजूद समर्थन मूल्य 2100 रूपए के साथ एक-एक दाना धान खरीदी का वादा और पूरे साल का बोनस नहीं देना भी विपक्ष के लिए मुद्दा होगा। इधर सरकार का जोर विकास पर होगा वहीं विपक्ष की ओर से सरकार की नाकामियां और भ्रष्टाचार बड़ा हथियार होगा।