पर्यावरण, वन एवं जलवायु संरक्षण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने मंगलवार को कहा कि कृषि के लिए मानसूनी बारिश पर भारी निर्भरता के कारण सूखा देश की वास्तविक समस्या है। जावड़ेकर ने धरती को बंजर होने से बचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलन (यूएनसीसीडी) के सदस्य देशों की इस साल सितंबर में दिल्ली में आयोजित होने वाली बैठक के बारे में यहां संवाददाताओं को जानकारी देने के क्रम में यह बात कही।
उन्होंने कहा ‘‘दुनिया के समक्ष इस समय जलवायु परिवर्तन की समस्या है जो लोगों के जीवन को बुरी तरह प्रभावित कर रही है। इससे प्राकृतिक आपदाएं पहले की तुलना में जल्दी-जल्दी आ रही हैं और बेहद खराब मौसम का सामना करना पड़ रहा है। हमारे देश में हर साल मानसून आता है और हम खुद देख सकते हैं कि इसमें कितना बदलाव आया है। सूखा देश की बड़ी समस्या है क्योंकि कृषि क्षेत्र का 60 प्रतिशत मानसूनी बारिश पर निर्भर है।’’
जावड़ेकर ने बताया कि सदस्य देशों की बैठक (सीओपी) में भूमि की खराब होती गुणवत्ता, सूखा और समाप्त होते जंगल प्रमुख मुद्दे होंगे। इसमें भारत मरूभूमि बन चुकी जमीन को दुबारा उर्वरा बनाने के अपने अनुभव भी साझा करेगा। बैठक के बाद एक नयी दिल्ली संकल्प भी जारी किया जाएगा। उन्होंने कहा कि किसानों को जारी मृदा स्वास्थ्य कार्ड और प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत हर साल छह हजार रुपये की मदद से भूमि की गुणवत्ता बनाये रखने में मदद मिली है।
यूएनसीसीडी के कार्यकारी सचिव इब्राहित चाऊ ने कहा कि स्थिति बेहद खराब है। हर मिनट 23 हेक्टेयर जमीन की गुणवत्ता खराब हो रही है और वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रति वर्ष 1.3 अरब डॉलर का नुकसान हो रहा है। मिट्टी की उर्वरा शक्ति समाप्त हो जाने के बाद या तो उस पर बिल्कुल उत्पादन नहीं होता, या उर्वरकों की मदद से होता भी है तो उससे आहार एवं जल श्रृंखला में रसायन भारी मात्रा में प्रवेश कर जाते हैं।
उन्होंने कहा कि दुनिया में 75 प्रतिशत जमीन अपनी प्राकृतिक अवस्था में नहीं रही है। धरती को जलवायु परिवर्तन और बंजर होने से बचाने की जरूरत है तथा दोनों एक-दूसरे से संबद्ध हैं। अच्छी बात यह है कि संयुक्त राष्ट्र ने अगले दशक को पारिस्थितिकी तंत्र को बचाने के दशक के रूप में चिह्नित किया है।
इब्राहित चाऊ ने बताया कि सदस्य देशों की नयी दिल्ली बैठक, जो दिल्ली के समीप ग्रेटर नोएडा में होगी, में यूएनसीसीडी के 197 सदस्य देश तथा संगठन हिस्सा लेंगे। इसमें देश तथा विदेशों के पाँच हजार से छह हजार प्रतिनिधियों के हिस्सा लेने की उम्मीद है। इससे पहले जावड़ेकर और इब्राहित चाऊ के बीच एक बैठक हुई जिसके बाद भारत ने मेजबान देश के करार पर हस्ताक्षर किया।