मशहूर वकील प्रशांत भूषण के अवमानना मामले में सजा के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। भूषण की ओर से पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की दलील देते हुए सजा पर सुनवाई टालने का आग्रह किया गया था, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया। बता दें कि प्रशांत भूषण को दो ट्वीट में न्यायपालिका की गरिमा को कम करने वाली टिप्पणी के लिए अवमानना का दोषी ठहराया गया है, इसमें छह महीने तक की सजा का प्रावधान है।
जस्टिस अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने भूषण को विश्वास दिलाया कि जब तक उन्हें अवमानना मामले में दोषी करार देने के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका पर निर्णय नहीं आ जाता, सजा संबंधी कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी। पीठ ने भूषण के वकील दुष्यंत दवे से कहा कि वह कोर्ट से अनुचित काम करने को कह रहे हैं कि सजा तय करने संबंधी दलीलों पर सुनवाई कोई दूसरी पीठ करे।
भूषण ने कहा मेरे ट्वीट एक नागरिक के रूप में मेरे कर्तव्य का निर्वहन करने के लिए थे, ये अवमानना के दायरे से बाहर हैं। उन्होंने कहा कि अगर मैं इतिहास के इस मोड़ पर नहीं बोलता तो मैं अपने कर्तव्य में असफल होता मैं किसी भी सजा को भोगने के लिए तैयार हूं जो कोर्ट देगी। उन्होंने कहा कि माफी मांगना मेरी ओर से अवमानना के समान होगा।
प्रशांत भूषण की तरफ से उनके वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि पुनर्विचार याचिका दाखिल करने के लिए उनके पास 30 दिनों का समय है, जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा कि कोर्ट का फैसला तब पूरा होगा जब कोर्ट सजा सुना देगी। दवे ने कहा कि क्यूरेटिव पिटीशन का उपाय भी है, इसके जवाब में जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा कि दोष सिद्धि की सुनवाई सजा के रूप में होती है। दोनों पर पुनर्विचार किया की जा सकता है क्या आप कह सकते हैं कि परिणामी आदेश पारित नहीं किया जा सकता है। निर्णय तब पूरा होगा जब यह पूरी तरह से स्पष्ट हो जाएगा।