उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री का मंत्रिपरिषद के सदस्यों पर अनुशासनात्मक नियंत्रण नहीं होता है और जब भी कोई अपमानजनक बयान दिया जाता है तो उनके लिए हर समय ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई करना संभव नहीं होता है।
न्यायमूर्ति एस ए नजीर की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सार्वजनिक पदाधिकारियों की भाषण और अभिव्यक्ति की आजादी के मुद्दे पर अपना फैसला सुनाते हुए यह टिप्पणी की। पीठ ने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री का मंत्रिपरिषद के सदस्यों पर अनुशासनात्मक नियंत्रण नहीं होता है। यह सच है कि व्यवहार में एक मजबूत प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री किसी भी मंत्री को मंत्रिमंडल से बाहर करने में सक्षम होगा।’’
न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमण्यम ने पीठ के लिए फैसला लिखा। उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन हमारे जैसे देश में जहां एक बहुदलीय प्रणाली है और जहां अक्सर गठबंधन सरकारें बनती हैं, प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री के लिए यह संभव नहीं है कि जब भी मंत्रिपरिषद में किसी के द्वारा कोई बयान दिया जाए तो वह कार्रवाई करे।’’
शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि केंद्र सरकार के मंत्री के मामले में प्रधानमंत्री और राज्य के मंत्री के मामले में मुख्यमंत्री को गलती करने वाले मंत्री के खिलाफ उचित कार्रवाई करने की अनुमति दी जानी चाहिए, जो काल्पनिक है।
उच्च सार्वजनिक पदाधिकारियों पर अतिरिक्त प्रतिबंधों के बड़े मुद्दे पर सहमति जताते हुए न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना ने एक अलग फैसला लिखा। हालांकि विभिन्न कानूनी सवालों पर उनकी राय अलग थी, जिसमें एक सवाल यह भी शामिल था कि क्या सरकार को अपने मंत्रियों के अपमानजनक बयानों के लिए अप्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।
शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाया कि उच्च सार्वजनिक पदाधिकारियों की बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर अतिरिक्त प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है क्योंकि उस अधिकार को रोकने के लिए संविधान के तहत पहले से ही व्यापक आधार मौजूद हैं।