हज यात्रा की तैयारियों की देखरेख करने के लिए स्वतंत्र मुस्लिम निकाय का गठन करने और सरकारी नियंत्रण वाली हज समिति को समाप्त करने के लिये एक जनहित याचिका दिल्ली हाई कोर्ट में दायर की गयी है। याचिका में केन्द्र द्वारा हाल ही में हज यात्रा के लिए सब्सिडी खत्म करने का जिक्र किया गया है। इसके तहत यात्रियों को आने-जाने के लिए सस्ते हवाईयात्रा टिकट मिलते थे। याचिका में कहा गया है कि सब्सिडी खत्म कर दी गयी है, ऐसी स्थिति में सरकारी नियंत्रण वाली समिति की जरूरत नहीं है और हज समिति अधिनियम 2002 को भी खत्म कर देना चाहिए।
दिल्ली के एक वकील शाहिद अली ने पिछले सप्ताह यह जनहित याचिका दायर कर अदालत से अनुरोध किया है कि वह स्वतंत्र निकाय के गठन और हज समिति को खत्म करने का निर्देश सरकार को दे। केन्द्र सरकार ने 1959 में बंबई से जेद्दा आने-जाने के लिए विमान सेवा पर हज यात्रियों को सब्सिडी देने का फैसला लिया था। याचिका में अदालत से अनुरोध किया गया है कि वह हज कमेटी के मौजूदा संविधान को रद्द करने के साथ ही भारत के मुसलमान नागरिकों को सिखों की भांति अपने निकाय के गठन की अनुमति देने का निर्देश केन्द्र को दे।
भारत के अल्पसंख्यकों सिखों को जिस प्रकार सिख गुरूद्वारा अधिनियम, 1925 के तहत अपनी गतिविधयों के लिए अपना निकाय बनाने की अनुमति है, मुसलमानों को भी इसकी अनुमति दी जाए। याचिका में कहा गया है कि सब्सिडी खत्म करने के बाद यह सवाल महत्वपूर्ण हो गया है कि क्या सरकार को हज कमेटी की गतिविधियों पर नियंत्रण जारी रखना चाहिए। क्या सरकार को हज के लिए आवेदन मंगाने से लेकर यात्रियों की घर वापसी तक की निगरानी करनी चाहिए। याचिका में मांग किया गया है कि हज कमेटी के स्थान पर सरकारी नियंत्रण के बाहर एक स्वतंत्र निकाय का गठन होना चाहिए।
अदालत से याचिका में अनुरोध किया गया है कि वह नागर विमानन मंत्रालय को निर्देश दे कि या तो वह भारत और सऊदी अरब के बीच उड़ान सेवा प्रदान करने वाली विमानन कंपनियों से खुला निविदा मंगवाये, या फिर यात्रियों को सीधे तौर पर हज यात्रा की टिकट खरीदने की अनुमति दे। याचिका में कहा गया है, यदि हज कमेटी अधिनियम को समाप्त नहीं किया गया तो इससे भारत के मुसलमानों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
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