भारत को शिक्षा, ज्ञान और विज्ञान में विश्व गुरू का दर्जा दिलाने में सार्वजनिक-निजी क्षेत्र की भागीदारी बेहद अहम : राजनाथ - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

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भारत को शिक्षा, ज्ञान और विज्ञान में विश्व गुरू का दर्जा दिलाने में सार्वजनिक-निजी क्षेत्र की भागीदारी बेहद अहम : राजनाथ

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि भारत को शिक्षा, ज्ञान और विज्ञान में विश्व गुरू का पुन: दर्जा हासिल करने में सार्वजनिक-निजी क्षेत्र की भागीदारी बेहद अहम है तथा सरकार रक्षा क्षेत्र में भी निजी क्षेत्र को साथ लेकर आगे बढ़ रही है।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि भारत को शिक्षा, ज्ञान और विज्ञान में विश्व गुरू का पुन: दर्जा हासिल करने में सार्वजनिक-निजी क्षेत्र की भागीदारी बेहद अहम है तथा सरकार रक्षा क्षेत्र में भी निजी क्षेत्र को साथ लेकर आगे बढ़ रही है।
कल्पना चावला ने अपने देश का नाम रोशन किया 
श्री सिंह ने आज यहां चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी में ‘कल्पना चावला अंतरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी अनुसंधान केंद्र‘ के उद्घाटन के मौके पर अपने सम्बोधन में कहा कि भारत को शिक्षा, ज्ञान और विज्ञान में विश्व स्तर पर पहुंचाना तथा सही मायनों में विश्व गुरू दर्जा हासिल करना है तथा यह लक्ष्य सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की भागीदारी से ही सम्भव है। उन्होंने कहा कि जिस तरह कल्पना चावला ने दुनिया के पार अंतरिक्ष में जाकर अपना और अपने देश का नाम रोशन किया है, उसी तरह यह अनुसंधान केंद, और इससे जुड़ विद्यार्थी आने वाले समय में नयी-नयी बुलंदियों को छूने में कामयाब होंगे।
रक्षा मंत्री ने कहा ‘‘राष्ट्रीय विकास में अंतरिक्ष क्षेत्र को लेकर जो सपना किसी समय डॉक्टर विक्रम साराभाई, डॉक्टर सतीश धवन और डॉक्टर ए.पी.जे। अब्दुल कलाम ने देखा था, हम उसे पूरा करने की ओर तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। अंतरिक्ष क्षेत्र में भी निजी क्षेत्र को भी बड़ पैमाने पर बढ़वा दिया जा रहा हें और इस तरह के प्रयासों से भारत विश्व में प्रौद्योगिकीय नेतृत्व हासिल कर सकता है। उन्होंने उपस्थित विद्यार्थियों से कहा कि आज 21वीं सदी में भारत का भविष्य तभी सुरक्षित है जब आपकी आँखों में चमक के साथ-साथ ग्रहों और तारों तक पहुंचने की इच्छा भी हो।
34 देशों के 342 उपग्रह अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक भेजे
उन्होंने कि मंगलयान जैसे मिशन, जिसके लिए लगभग दस गुना ज्यादा लागत लगाने के बाद भी अमरीका और रूस जैसे देशों को 5-6 बार प्रयास करने पड़ लेकिन भारत ने इसे पहली बार में ही सफलतापूर्वक लाँच कर दिया। अब तक भारत ने अमरीका, जापान, इजरायल, फ्रांस, स्पेन, सयुक्त अरब अमिरात और सिंगापुर समेत 34 देशों के 342 उपग्रह अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक भेजे हैं। गत महत्र तीन साल में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन(इसरो) ने इस कार्य से 5600 करोड़ रूपये कमाए हैं जो एक बड़ बात है। 
जिस समय इसरो का गठन हो रहा था उस समय अमरीका और रूस जैसे देश इस क्षेत्र में काफ़ आगे बढ़ चुके थीं। यानी दुनिया में भारत को स्थान बनाना एक बड़ और कठिन कार्य था। इसके बावजूद इसरों के वैज्ञानिकों की दिन-रात की कड़ मेहनत, और लगन, उनके उत्साह और वित्रन ने पाँच दशक के अंदर देश को शीर्ष अंतरिक ताकतों की श्रेणी में लाकर खड़ कर दिया।
देश जितना साधु-संतों का रहा उतना ही विद्वानों और वैज्ञानिकों का भी रहा
श्री सिंह ने कहा ‘‘जब हमारे विद्यार्थियों की आँखों में ग्रह-नक्षत्रों को जानने और उन तक पहुंचने की अकांक्षा होगी, तब मैं समझूंगा कि भारत के हर कोने से आर्यभट्ट निकलेंगे। मुझे उम्मीद ही नहीं विश्वास है कि आपके बीच से ही कई साराभाई, सतीश धवन या कल्पना चावला बनकर उभरेंगे। 
देश ने अतीत ने आर्यभट्ट, वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त, भास्कराचार्य ऐसे विद्धान दिये हैं जिन्होंने डेसीमल प्रणाली, शून्य और पाई जैसे गणितीय गणनाएं दुनियां को दीं। भारत प्राचीन समय में कला, साहित्य, संगीत और ज्योतिष विज्ञान के साथ अंतरिक्ष और ब्रह्मांड विज्ञान जुड़ विषयों में भी काफी आगे रहा है। यानि यह देश जितना साधु-संतों का रहा है उतना ही विद्वानों और वैज्ञानिकों का भी रहा है।

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