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GDP में गिरावट को रघुराम राजन ने बताया खतरे की घंटी, कहा- यह देश के लिए है चेतावनी

रघुराम राजन ने कहा है कि जीडीपी में नकारात्मक बढ़ोतरी हर किसी के लिए खतरे की घंटी की तरह है। हालिया परिदृश्य में सरकारी राहत या समर्थन के महत्व को लेकर उन्होंने इसे ‘अल्प’ माना।

एक सप्ताह पहले वित्तवर्ष 2020-21 की तिमाही अप्रैल-जून के दौरान भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में गिरावट की खबर सामने आने के बाद रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर और जाने माने अर्थशास्त्री रघुराम राजन ने कहा है कि जीडीपी में नकारात्मक बढ़ोतरी हर किसी के लिए खतरे की घंटी की तरह है। हालिया परिदृश्य में सरकारी राहत या समर्थन के महत्व को लेकर उन्होंने इसे ‘अल्प’ माना।
राजन ने चालू वित्त वर्ष की पहली (अप्रैल-जून) तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 23.9 प्रतिशत की गिरावट को चिंताजनक बताया है। उन्होंने कहा है कि नौकरशाही को अब आत्मसंतोष से बाहर निकलकर कुछ अर्थपूर्ण कार्रवाई करनी होगी। उन्होंने कहा कि मौजूदा संकट के दौरान एक अधिक विचारवान और सक्रिय सरकार की जरूरत है। राजन ने कहा, ‘‘दुर्भाग्य से शुरुआत में जो गतिविधियां एकदम तेजी से बढ़ी थीं, अब फिर ठंडी पड़ गई हैं।’’
राजन ने अपने लिंक्डइन पेज पर पोस्ट में लिखा है, ‘‘आर्थिक वृद्धि में इतनी बड़ी गिरावट हम सभी के लिए चेतावनी है। भारत में जीडीपी में 23.9 प्रतिशत की गिरावट आई है। (असंगठित क्षेत्र के आंकड़े आने के बाद यह गिरावट और अधिक हो सकती है)। वहीं कोविड-19 से सबसे अधिक प्रभावित देशों इटली में इसमें 12.4 प्रतिशत और अमेरिका में 9.5 प्रतिशत की गिरावट आई है।’’
उन्होंने कहा कि इतने खराब जीडीपी आंकड़ों की एक अच्छी बात यह हो सकती है कि अधिकारी तंत्र अब आत्मसंतोष की स्थिति से बाहर निकलेगा और कुछ अर्थपूर्ण गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करेगा। राजन फिलाहल शिकॉगो विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं। उन्होंने कहा कि भारत में कोविड-19 के मामले अब भी बढ़ रहे हैं। ऐसे में रेस्तरां जैसी सेवाओं पर विवेकाधीन खर्च और उससे जुड़ा रोजगार उस समय तक निचले स्तर पर रहेगा, जब तक कि वायरस को नियंत्रित नहीं कर लिया जाता।
राजन ने कहा कि सरकार संभवत: इस समय अधिक कुछ करने से इसलिए बच रही है, ताकि भविष्य के संभावित प्रोत्साहन के लिए संसाधन बचाए जा सकें। उन्होंने राय जताई कि यह आत्मघाती रणनीति है। एक उदाहरण देते हुए राजन ने कहा कि यदि हम अर्थव्यवस्था को मरीज के रूप में लें, तो मरीज को उस समय सबसे अधिक राहत की जरूरत होती है जबकि वह बिस्तर पर है और बीमारी से लड़ रहा है।
उन्होंने कहा, ‘‘बिना राहत या सहायता के परिवार भोजन नहीं कर पाएंगे, अपने बच्चों को स्कूल से निकल लेंगे और उन्हें काम करने या भीख मांगने भेज देंगे। अपना सोना गिरवी रखेंगे। ईएमआई और किराये का भुगतान नहीं करेंगे। ऐसे में जब तक बीमारी को नियंत्रित किया जाएगा, मरीज खुद ढांचा बन जाएगा।’’
रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर ने कहा कि अब आर्थिक प्रोत्साहन को ‘टॉनिक’ के रूप में देखें। ‘‘जब बीमारी समाप्त हो जाएगी, तो मरीज तेजी से अपने बिस्तर से निकल सकेगा। लेकिन यदि मरीज की हालत बहुत ज्यादा खराब हो जाएगी, तो प्रोत्साहन से उसे कोई लाभ नहीं होगा।
राजन ने कहा कि वाहन जैसे क्षेत्रों में हालिया सुधार वी-आकार के सुधार (जितनी तेजी से गिरावट आई, उतनी ही तेजी से उबरना) का प्रमाण नहीं है। उन्होंने कहा, ‘‘यह दबी मांग है। क्षतिग्रस्त, आंशिक रूप से काम कर रही अर्थव्यवस्था में जब हम वास्तविक मांग के स्तर पर पहुंचेंगे, यह समाप्त हो जाएगी।’’
राजन ने कहा कि महामारी से पहले ही अर्थव्यवस्था में सुस्ती थी और सरकार की वित्तीय स्थिति पर भी दबाव था। ऐसे में अधिकारियों का मानना है कि वे राहत और प्रोत्साहन दोनों पर खर्च नहीं कर सकते। उन्होंने कहा, ‘‘यह सोच निराशावादी है। सरकार को हरसंभव तरीके से अपने संसाधनों को बढ़ाना होगा और उसे जितना संभव हो, समझदारी से खर्च करना होगा।’’

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