कांग्रेस ने राहुल गांधी पर भारतीय जनता पार्टी के हमले को लेकर पलटवार करते हुए मंगलवार को कहा कि विपक्षी नेताओं के बयानों को तोड़ने-मरोड़ने वाले लोग खुद का पसंदीदा नारा ‘अबकी बार, ट्रंप सरकार’ भूल गए हैं।पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि भाजपा नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद अपने ‘सुप्रीमो’ की तरह बदनाम करने और सरासर झूठ बोलने का काम कर रहे हैं।
उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘रविशंकर प्रसाद वही कर रहे हैं जो उनके सुप्रीमो करते हैं, यानी विकृत करो, तोड़ो-मरोड़ो, बदनाम करो और सरासर झूठ बोलो।’’कांग्रेस के मीडिया विभाग के प्रमुख पवन खेड़ा ने प्रसाद पर तंज कसते हुए कहा, ‘‘इससे ज्यादा कुछ भी दिलचस्प नहीं हो सकता कि सत्तारूढ़ पार्टी के एक बेरोजगार नेता प्रासंगिकता और रोजगार हासिल करने का प्रयास कर रहे हैं।’’
Mr. Ravi Shankar Prasad is doing what he and his Supremo do best–distort, twist, defame and lie with a straight face. https://t.co/8GuRmohU3Z
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) March 7, 2023
उन्होंने कहा, ‘‘जो लोग विपक्षी नेताओं को तोड़ने-मरोड़ने का काम करते हैं वे अपना खुद का पसंदीदा नारा ‘अबकी बार, ट्रंप सरकार’ भूल गए हैं।’’उल्लेखनीय है कि भाजपा ने विदेशी धरती से भारत में लोकतंत्र की स्थिति और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की आलोचना करने के लिए मंगलवार को राहुल गांधी की आलोचना की और कहा कि उसका स्पष्ट विश्वास है कि पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष पूरी तरह से ‘‘माओवादी विचार प्रक्रिया’’ और ‘‘अराजक तत्वों’’ की गिरफ्त में हैं।
पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए राहुल गांधी द्वारा शर्मनाक झूठ फैलाने और निराधार दावे करने के लिए ‘‘ब्रिटिश संसद के मंच का दुरुपयोग’’ करने पर अपनी पार्टी की अस्वीकृति भी व्यक्त की और कहा कि इसका ‘‘उचित खंडन’’ करने की जरूरत है।उन्होंने राहुल गांधी पर भारत के लोकतंत्र, यहां की संसद, न्यायिक व राजनीतिक व्यवस्था, सामरिक सुरक्षा के साथ साथ जनता का भी अपमान करने का आरोप लगाया।
राहुल गांधी ने सोमवार को लंदन स्थित संसद परिसर में ब्रिटिश सांसदों से कहा कि भारत की लोकसभा में विपक्ष के लिए माइक अक्सर ‘‘खामोश’’ करा दिए जाते हैं।कांग्रेस नेता ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को एक ‘‘ कट्टरपंथी, फासीवादी संगठन’’ बताते हुए कहा कि उसने देश के संस्थानों पर कब्जा करके भारत में लोकतांत्रिक चुनाव की प्रकृति को बदल दिया है।