छत्तीसगढ़ में किसानों के मुद्दे पर घिरी रमन सरकार ने बोनस का ऐलान कर एक तीर से कई निशाने लगा दिए। प्रदेश में चुनावी घोषणा के तहत समर्थन मूल्य 2100 रूपए के साथ प्रति क्विंटल 300 रूपए बोनस को लेकर बीते चार साल से रमन सरकार विपक्ष के घेरे में रही। इधर संगठन की बैठक में प्रदेश प्रभारी की मौजूदगी में जनप्रतिनिधियों के दबाव के बाद आखिरकार यह फैसला लेना पड़ गया। हालांकि सरकार ने अभी एक साल के ही बोनस का ऐलान किया है। किसानों को बीते अन्य वर्षों के एरियर्स की घोषणा बाकी है।
इसके बावजूद इस फैसले से सरकार ने कुछ हद तक डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की है। प्रदेश में कर्ज में डूबे किसानों की आत्महत्या के बढ़ते प्रकरण के बाद चिंतित सरकार ने बोनस के तौर पर 2100 करोड़ की राशि देने का फैसला कर लिया। इधर राजनीतिक प्रेक्षकों की मानें तो प्रदेश में किसान वर्ग सरकार से खासा नाराज चल रहा था। राज्य में ग्रामीण स्तरीय पंचायती राज के चुनाव में हार का भी सामना करना पड़ा। इधर प्रदेश में सहकारी समितियों के चुनाव में भी सत्ताधारी दल समर्थित प्रत्याशियों को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी थी। इसके बाद से ही सरकार पर दबाव बढऩे लगा था।
हालांकि फौरी राहत देने के बाद सरकार इस निर्णय को चुनावी मैदान में भुनाने की कोशिश करेगी। विपक्ष ने इस निर्णय को जुमला करार देते हुए अन्य वर्षों के लंबित बोनस देने की मांग उठा दी है। राज्य में किसान वर्ग के वोट निर्णायक माने जाते हैं। इधर एक वर्ग ने प्रदेश में मौरूषी काश्तकारों को राहत देने का दबाव बढ़ाया है। राज्य में रेग पर खेती करने वाले किसानों की तादाद सबसे अधिक है।
संगठन की मैराथन बैठक में एक तरह से किसानों की नाराजगी का मुद्दा ही छाया रहा। यही वजह है कि केन्द्र सरकार द्वारा किसानों को बोनस बंद करने के बाद राज्य सरकार को अपने संसाधनों से ही बोनस की राशि की व्यवस्था करनी पड़ी है। राज्य में किसान संगठनों के साथ विपक्षी दल ने भी इस मामले में आंदोलन किया था। अब किसानों को मिलने वाली किश्त के स्वरूप का इंतजार हो रहा है।